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राव मालदेवजी उन सरदारों को भी, जिनके प्रदेशों पर मालदेवजी ने जबरदस्ती अधिकार कर लिया था, शेरशाह से मिलाया और हर तरह से उसका उत्साह बढ़ाकर उसे पीछे लौटने से रोक दिया । इसके बाद शेरशाह ने एक सुभीते के स्थान पर अपनी छावनी डाल दी
और उसकी रक्षा के लिये रेत से भरे बोरों को चारों तरफ़ ऊपर-तले रखवाकर सुदृढ़ कोट-सा तैयार करवा लिया । करीब एक मास तक दोनों सेनाएँ मोरचे बाँधे एक दूसरे के सामने पड़ी रहीं । हाँ, समय-समय पर इन दोनों के बीच अनेक छोटे-बड़े युद्ध भी होते रहते थे, परन्तु राव मालदेवजी की वीर राठोड़वाहिनी के सामने शेरशाह की एक न चली । इससे हताश होकर वह एक बार फिर लौट जाने का विचार करने लगा। यह देख वीरम ने उसे बहुत कुछ समझाया । जब इस पर भी वह सम्मुख युद्ध में लोहा लेने की हिम्मत न कर सका, तब अंत में वीरम ने उसे यह भय दिखाया कि यदि आप इस प्रकार घबराकर लौटेंगे, तो रावजी की सेना पीठ पर आक्रमण कर आपके बल को आसानी से नष्ट कर डालेगी। परन्तु जब इतने पर भी शेरशाह युद्ध के लिये सहमत न हुआ, तब वीरमदेव ने एक कपटजाल रचा । उसने मालदेवजी के बड़े-बड़े सरदारों के नाम कुछ झूठे फरमान लिखवाकर रावजी की सेना में भिजवा दिए और साथ ही ऐसा प्रबंध करवा दिया कि वे सब फरमान उन सरदारों के पास न पहुँच कर रावजी के पास पहुँच गए । इससे रावजी को अपने सरदारों पर संदेह
१. मारवाड़ की ख्यातों में लिखा है कि इधर तो वीरम ने इन फ़रमानों को ढालों के अन्दर
की गद्दियों में सिलवा कर उन्हें अपने गुप्तचरों द्वारा मालदेवजी के सरदारों के हाथ बिकवा दी और उधर रावजी को सूचना दी कि यद्यपि आपने मेरे साथ बहुत ज्यादती की है, तथापि मैं आपको सूचना दे देना अपना कर्तव्य समझता हूँ कि आपके सारे सरदार शेरशाह से मिल गए हैं | यदि आपको विश्वास न हो तो, उनकी नई ढालों की गद्दियाँ फड़वाकर स्वयं देख लें। इस पर रावजी ने जब वे ढालें मँगवा कर उनकी गद्दियाँ
खुलवाई, तब उनमें से वे जाली फ़रमान निकल आए । मारवाड़ की तवारीखों में यह भी लिखा है कि जिस समय यह कपट रचा गया था, उस समय बादशाह का मुकाम सुमेल और मालदेवजी का गिररी में था । ___'मुन्तखिबुल्लुबाब' में लिखा है कि ये जाली पत्र चालाकी से राव के पास पहुंचा दिए गए थे । इनमें एक पत्र गोविंद (पा ) के नाम का भी था। इस गोविंद (फँपा) ने राव के युद्धस्थल से हट जाने पर पठानों से ऐसी वीरता से युद्ध किया कि उनके हज़ारों आदमी मार डाले । साथ ही उसके हमलों से शेरशाह की फ़ौज के पैर उखड़ गए और वह युद्धस्थल से भाग ही चुकी थी कि इतने में नई फौज के साथ जलालखाँ जलवानी एकाएक वहाँ आ पहुँचा । इससे पठान विजयी हो गए।
(देखो जिल्द १, पृ० १००-१०१)
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