________________
मारवाड़ का इतिहास
का पता चला, तब वह वीर राठोड़ वापिस लौटकर उससे भिड़ गया । यद्यपि उस समय राजपूतों ने बड़ी बहादुरी से मुगलों का सामना किया, तथापि संख्या की अधिकता के कारण विजय मुसलमानों के ही हाथ रही । वीर देवीदास युद्ध करता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ । यह युद्ध सोगावास और मेड़ते के बीच हुआ था ।
इसके बाद शरफुद्दीन ने मेड़ते का अधिकार जयमल को सौंप दिया, परन्तु स्वयं उसे साथ लेकर नागोर पहुँचा । वहीं पर इन दोनों के बीच किसी बात पर झगड़ा हो गया । इस पर जयमल उसे छोड़कर चित्तौड़ चला गया । कुछ ही काल के भीतर बादशाह अकबर ने अजमेर के सूबे का प्रबंध कर मारवाड़ के परबतसर और
बड़े सरदार जगमाल को सौंपा हुआ था। साथ ही उसकी मदद के लिये ५०० सवारों के साथ वीरवर देवीदास भी नियत था ।
(देखो भा० २, पृ० १६० )
‘तबकाते अकबरी' में उस समय मेड़ते के किले का जैमल के अधिकार में होना लिखा है (देखो पृ० २५६ ) | यह ठीक नहीं है । उस समय के वहां के किलेदार का नाम जगमाल ही था । 'अकबरनामे' में यह भी लिखा है कि देवीदास संधि के विरुद्ध अपना साज-सामान जलाकर किले से निकला था । इसीलिये शरफुद्दीन ने उसका पीछा किया। उसी पुस्तक में आगे लिखा है कि देवीदास ने युद्ध में वह काम किया कि रुस्तम का नाम और निशान तक दुनिया से मिटा दिया । अंत में युद्ध करता हुआ वह घोड़े से गिर पड़ा। इसी समय बहुत से सैनिकों ने धावा कर उसे मार डाला (देखो भाग २, पृ० १६२ ) ।
मारवाड़ की ख्यातों और फ़ारसी तवारीखों में देवीदास का एक संन्यासी द्वारा बचाया जाना और कुछ वर्ष बाद चंद्रसेनजी के समय वि० सं० १६३३ ( ई० स० १५७६ ) में वापिस लौटकर आना भी लिखा है ।
'मुन्तखिबुल लुबाब' नामक इतिहास में लिखा है कि हि० स० ६६८ ( वि० सं० १६१८ ) में बादशाह अकबर ने मिरज़ा शरफुद्दीन को मारवाड़ फ़तह करने के लिये मालदेव पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी । इसपर उसने जोधपुर पहुँच वहाँ के किले को घेर लिया । कुछ दिन बाद मालदेव ने संधि का प्रस्ताव किया । इस पर यह तय हुआ कि मालदेव तो जाकर सिवाने के किले में रहे और उसका छोटा भाई ७ दिन में अपने परिवार को हटाने का प्रबन्ध करके साज-सामान सहित क़िला शाही सैनिकों को सौंप दे। परंतु मालदेव के चले जाने पर उसके भाई और शरफुद्दीन के बीच किसी बात पर झगड़ा हो गया । इससे राव का भाई ५०० सवारों के साथ किले से निकलकर सम्मुख रण मारा गया । (देखो पृष्ठ १५६ - १६० )
हमारी समझ में इस इतिहास के लेखक ने गलती से मेड़ते पर की चढ़ाई को जोधपुर की चढ़ाई लिख दिया है और देवीदासवाली घटना का सम्बन्ध मालदेवजी के भाई के साथ कर दिया है।
સેન
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com