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मारवाड़ का इतिहास का अच्छा मौका मिला देख, मारवाड़-राज्य को पददलित करने के लिये, राम की प्रार्थना स्वीकार करली और मुजफ्फरखाँ को सेना देकर उसके साथ कर दिया। साथ ही उसने हुसेनकुली को भी लिख दिया कि राव चन्द्रसेन से जोधपुर का किला छीन लो और राव राम को सोजत का परगना दिलवा दो। इस आज्ञा के पहुँचते ही हुसेनकुली ने आकर फिर जोधपुर को घेर लिया । राव चन्द्रसेनजी भी किले का आश्रय लेकर मुगल-सेना का सामना करने लगे । कहते हैं, जब शाही सेनानायकों ने किले पर किसी प्रकार भी अपना अधिकार होता न देखा, तो रानीसरे की तरफ़ के मार्ग से किले में घुसने का प्रयत्न करने लगे । परन्तु इसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली । अंत में जब कई महीनों के घेरे से किले में का खाने-पीने का सब सामान समाप्त हो चला, तब मुख्य-मुख्य सरदारों ने रावजी को किला छोड़कर चले जाने के लिये बाध्य किया । इस पर इच्छा न होते हुए भी राव चन्द्रसेनजी तो अपने परिवार सहित भाद्राजण की तरफ़ चले गए और जो सरदार किले के रक्षार्थ पीछे रह गए थे, वे मुसलमानों से सम्मुख रण में जूझ कर वीरगति को प्राप्त हुए । इस प्रकार किले पर शाही सेना का अधिकार हो गया । इसका समाचार पातेही चन्द्रसेनजी ने इधर-उधर आक्रमण कर धन-जन एकत्रित करना और समय-समय पर मुसलमानों को तंग करना शुरू किया।
अकबर नामे में लिखा है।
"चन्द्रसेन के गद्दी बैठने पर हुसेनकुली बेग और बादशाही फौज ने आकर जोधपुर के किले को घेर लिया । यह समाचार पाकर राव मालदेव का बड़ा पुत्र राम भी आकर शाही सेना के साथ हो गया। इस पर सेना के अमीरों ने उसे बादशाह के पास भेज दिया । वहाँ पहुँचने पर अकबर ने उसके साथ बड़ा अच्छा बर्ताव १. जिस समय हुमायूँ , शेरशाह के विरुद्ध राव मालदेवजी से सहायता मांगने आया था, उस
समय उसके सैनिकों ने मारवाड़-राज्य में गोवध कर डाला था। इसी से अप्रसन्न होकर मालदेवजी ने उसकी सहायता करने से हाथ खींच लिया और हुमायूँ को निराश हो
लौटना पड़ा। यही इस वैर का कारण था। २. इसी तालाब से किले में पानी पहुंचाने का एक मार्ग था। यह मार्ग अभी तक विद्यमान है। ३. ख्यातों में इस घटना का समय वि० सं० १६२२ की मंगसिर वदि १२ (ई० स० १५६५
की १६ नवंबर ) लिखा है । ४. देखो, भाग २, पृ० १६७।
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