________________
राव चन्द्रसेनजी चढ़ाई करदी । उस समय मुगल-सम्राट अकबर का बल बहुत बढ़ रहा था । इसी से मारवाड़ के कुछ समझदार सरदारों ने, इस प्रकार आपरा के कलह से राठोड़ों के बल की हानि देख, दोनों को भली भाँति समझा दिया । इस पर चंद्रसेनजी ने चढ़ाई का विचार त्याग दिया।
ख्यातों में लिखा है कि इसके बाद वि० सं० १६२० ( ई० सन् १५६३ ) में राव चन्द्रसेनजी ने अपने भाई राम पर चढ़ाई की । इसकी सूचना पाते ही पहले तो राम ने भी नाडोल में आकर इनकी सेना का सामना किया, परन्तु अंत में विजय की आशा न देख वह नागोर के शाही हाकिम हुसेनकुली बेग के पास चला गया
और राव मालदेवजी का ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण जोधपुर पर अपना हक़ बतलाकर इस कार्य में उससे सहायता मांगने लगा । इस पर उसने भी इसप्रकार के आपस के कलह से लाभ उठाने की आशा से अचानक चढ़ाई कर जोधपुर को घेर लिया । कई दिनों के युद्ध के बाद रसद आदि की कमी के कारण राव चन्द्रसेनजी ने सोजत का परगना रामसिंह को, और सेना का खर्च हुसेनकुली को देने का वादा कर आपस में संधि करली । इससे चन्द्रसेनजी का अधिकार केवल जोधपुर, जैतारण, पोकरण और सिवाने के परगनों पर ही रह गया । परन्तु हुसेनकुली के लौट जाने पर रावजी की ओर से इस संधि की शर्त का, राव राम की इच्छानुसार, पूरा-पूरा पालन न हो सका । इस पर वि० सं० १६२१ (ई० सन् १५६४ ) में राव राम ने बादशाह अकबर के पास जाकर सहायता माँगी । बादशाह ने भी अपने बाप का बदला लेने
१. कहीं-कहीं यह भी लिखा मिलता है कि राव राम ने ही, महाराणा उदयसिंहजी की सहायता
पाकर, मारवाड़ पर अधिकार करने की इच्छा से पहले चढ़ाई की थी। २. तारीखे पालनपुर (जिल्द १, पृ० ७७) में बादशाह अकबर से बागी होकर मिरज़ा
शर्फ़द्दीन का मालदेवजी के मरने पर मेड़ते पर चढ़ाई करना और चंद्रसेनजी का उससे संधि कर मेड़ते की रक्षा करना लिखा है, तथा इस घटना का समय वि० स० १६१५ (ई० स० १५५६ ) दिया है । यह भ्रम-पूर्ण है; क्योंकि मेड़ता तो शफुद्दीन ने मालदेवजी के समय ही जयमल को सौंप दिया था । परन्तु शीघ्र ही जयमल्ल नाराज़ होकर मेवाड़ चला गया। इसके बाद जब शर्फ़द्दीन बागी हुआ, तब अकबर ने मेड़ता श(द्दीन से लेकर जगमाल को दे दिया था । शर्फ़द्दीन वि० सं० १६२० (हि० स० ६७१ ई० स० १५६३ ) में बागी हुआ. था और मालदेवजी का स्वर्गवास वि० स० १६१६ में हुअा था।
१४६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com