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राव मालदेवजी बादशाहों की मातहती नहीं करते थे । साथ ही जोधपुर, मेड़ता और सिवाना के से मजबूत किलों के भरोसे पर मगरूर सरकशों में मशहूर थे।
___(मुन्तखबुल्लुबाब, हिस्सा १, पे० १५६) मारवाड़ का जमींदार राय मालदेव हिंदुस्थान के बड़े राजाओं में से था और अपने साज-सामान और फौज के लिये मशहूर था । मारवाड़ अजमेर के सूबे का एक इलाका है, जो १०० कोस लंबा और ६० कोस चौड़ा है । अजमेर, जोधपुर, सिरोही, नागोर और बीकानेर इसमें दाखिल हैं।
(मासिरुल उमरा, भा॰ २, पृ० १७६ ) इन विरोधी, विधर्मी और विदेशी लेखकों के लिखे इतिहासों के अवतरणों से मी प्रकट होता है कि वास्तव में राव मालदेवजी अपने समय के सर्वश्रेष्ठ और प्रबल पराक्रमी राजा थे।
कल टॉड ने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि वि० सं० १६२५ ( ई० सन् १५६१ ) में जिस समय अकबर अजमेर में था, उस समय मालदेव ने अपने द्वितीय पुत्र चंद्रसेन को नज़राने के साथ उसके पास भेजा था । परन्तु उसका यह लिखना विलकुल सत्य से परे है, क्योंकि राव मालदेवजी तो इस समय से करीब ६ वर्ष पूर्व अर्थात्-वि० सं० १६१६ (ई० सन् १५६२ ) में ही इस असार संसार को छोड़ चुके थे।
१. ऐनाल्स ऐन्ड ऐण्टिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान (डब्ल्यू क्रुक संपादित), भा॰ २, पृ० ९५८ ।
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