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मारवाड़ का इतिहास
वि० सं० १६१४ ( ई० सन् १५५७=हि० सन् १६५ ) में कासिमखाँ (अजमेर के सूबेदार ) की आज्ञा से सैयद मैहमूद बाराह और शाह कुलीखाँ ने जैतारण पर चढ़ाई की। इसपर वहाँ के स्वामी ऊदावत रतनसी ने मालदेवजी से सहायता माँगी । परन्तु रावजी ने उससे अप्रसन्न होने के कारणं इधर ध्यान ही नहीं दिया। इससे युद्ध में रतनसी मारा गया और जैतारण पर मुसलमानों का अधिकार हो गया।
इसके बाद राव मालदेवजी ने मेड़ते में के वीरमदेव और जयमल के बनवाए हुए स्थानों को गिरवाकर वहाँ पर एक नया किला बनवाया और उसका नाम अपने नाम पर मालकोट रक्खा । साथ ही वहाँ के नगर को भी नए सिरे से बसाया ।
ख्यातों से ज्ञात होता है कि वि० सं० १६१६ (ई० सन् १५५१ ) में जैतावत देवीदास को जालोर पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी गई थी। इसी के अनुसार पहले तो उसने बिहारी पठानों से जालोर छीन लिया और इसके बाद बदनोर पर आक्रमण कर दिया । इससे जैमलजी को उक्त प्रदेश छोड़ देना पड़ा।
वि० सं० १६१८ ( ई० सन् १५६१ ) में जिस समय अकबर बादशाह अजमेर को आता हुआ मार्ग में सांभर में ठहर हुआ था, उस समय जयमल जाकर उससे मिला और अपना सारा वृत्तांत कह कर अपने पैतृक राज्य मेड़ते पर अधिकार करने में सहायता चाही । बादशाह ने भी आपस की फूट से अपने पिता का बदला
महाराजकुमार चंद्रसेनजी ने मेड़ते पर चढ़ाई की थी और महाराना उदयसिंहजी बीच बचावकर जयमल को अपने साथ बीकानेर ले गए थे, उस समय वहां से उदयपुर लौटने
पर ही शायद यह जागीर उसे दी गई होगी। १. वि० सं० १६१० (ई० स० १५५३ ) में मेड़ता विजय करते समय यद्यपि रतनसी राव
मालदेवजी की तरफ से युद्ध में सम्मिलित हुआ था, तथापि लड़ाई के समय उसने जयमल के पक्ष के ऊदावत दूंगरसी को वार में आ जाने पर भी अपना कुटुम्बी समझ
छोड़ दिया था । इसी से मालदेवजी उससे नाराज़ हो गए थे। २. ईलियट्स हिस्ट्री ऑफ इंडिया, भा० ६, पृ० २२ (अकबरनामा दफा २, पृ० ६६)
मारवाड़ की ख्यातों में इस घटना का कासिमखाँ द्वारा वि० सं० १६१६ (ई० स० १५५६) में होना लिखा है । परंतु यह ठीक प्रतीत नहीं होता।
३. 'तबकाते अकबरी' में लिखा है
जब हि० स० ६६७ (वि० सं० १६१७ ई० स० १५६० ) में बादशाह अकबर खाँखानान् बेहरामखा से नाराज़ हो गया, तब उसको हज़ का बहाना करना पड़ा । परंतु जिस समय वह इस यात्रा के लिये गुजरात की तरफ चना, उस समय उसे खयाल आया कि इस मार्ग में तो मेरा प्रबल
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