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राव मालदेवजी की । इससे हुमायूँ को संदेह हो गया और वह फलोदी होता हुआ उमरकोट की तरफ़ चला गया।
१. फारसी तवारीखों में लिखा है कि शेरशाह के प्रलोभनों से राव मालदेवजी ने हुमायूँ को
पकड़कर उसके हाथ सौंप देने का इरादा कर लिया था और इसी से जब हुमायूँ उमरकोट की तरफ भागने लगा, तब इन्होंने उसको पकड़ने के लिये अपनी सेना उसके पीछे
रवाना की । परंतु इसमें उसे असफल हो लौटना पड़ा। मारवाड़ की हस्तलिखित ऐतिहासिक पुस्तकों में यह घटना इस प्रकार लिखी मिलती है
शेरशाह से हारकर जब बादशाह हुमायूं मालदेवजी से सहायता प्राप्त करने को जोधपुर के निकट आकर ठहरा, तब रावजी ने उसका बड़ा आदर-सत्कार किया । इसके बाद हुमायूँ ने जोधपुर के निकट रहना अनुचित समझ फलोदी में अपना मुकाम करने की इच्छा प्रकट की । इसे इन्होंने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया। जब इसी के अनुसार वह देईझर मे फलोदी को रवाना हुआ, तब मार्ग के ग्रामों में होनेवाले उपद्रव को रोकने के लिये इन्होंने अपने कुछ सैनिक भी उसके पीछे भेज दिए । परन्तु शाही लश्कर को इससे उलटा यह संदेह हो गया कि शायद ये लोग मार्ग में हमको मारकर शाही खज़ाना लूटने को ही साथ हुए हैं ।
इसके बाद एक दुर्घटना और हो गई। जिस समय हुमायूँ फलोदी पहुँचा, उस समय उसके कुछ सैनिकों ने मिलकर एक गाय को मार डाला । इससे रावजी की सेना में घोर असंतोष फैल गया । यह देख हुमायूँ का संदेह और भी बढ़ गया और वह फलोदी को छोड़ सिंध की तरफ चल पड़ा । परन्तु रावजी के सैनिकों ने समझा कि हिन्दुओं के धर्म का अपमान करने को ही शाही सैनिकों ने यह गोवध किया है । इससे वे लंग उत्तेजित हो गए और उन्होंने जाते हुए बादशाह का पीछा किया । सातलमेर में पहुँचते-पहुँचते दोनों पक्षों के बीच मुठभेड़ हो गई । परन्तु अंत में अपने पुरुषों की संख्याधिकता के कारण हुमायूँ बचकर निकल गया और जैसलमेर होता हुआ उमरकोट जा पहुँचा ।
हमारी समझ में मारवाड़ की ख्यातों का लेख ही अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होता है, क्योंकि यदि वास्तव में राव मालदेवजी शेरशाह से मिलकर बादशाह हुमायूँ को, जो कि अपने बिगड़े हुए समय में जोधपुर से ४ कोस के फ़ासले पर ठहरा हुआ था, पकड़ना चाहते, तो न तो मालदेवजी के ८०,००० सैनिकों के व्यूहसे बचकर उसका निकल भागना ही संभव होता, न उसके फलोदी जाने के समय वे इतने थोड़े सैनिक ही उसके पीछे भेजते कि जिससे सातलमेर में इतनी आसानी से वह बचकर निकल जाता । 'अकबरनामे' के अनुसार उस समय हुमायूँ के साथ केवल २० अमीर और कुछ थोड़े अनुचर तथा सैनिक थे । उसमें यह भी लिखा है कि मालदेव के विरोध का हाल मालूम होने पर हुमायूँ ने तरद्दुदी वेगखाँ और मुनअमखाँ को कुछ फ़ौज देकर हुक्म दिया कि वे लोग सामने जाकर मालदेव की सेना का मार्ग रोकें । परन्तु ये अमीर रास्ता भूल कर दूसरी तरफ निकल गए । इससे जैसे ही बादशाह फलोदी से चलकर सातलमेर के पास पहुँचा, वैसे ही उसे मालदेव की सेना दिखाई दी । इस पर बादशाह ने ज़नानी सवारियों को पैदल करके उनके घोड़े अपने सैनिकों को सवारी के लिये दे दिए और उनके ३ दल बनाकर फ़तेहअलीबेग को उसके ३-४ भाइयों के
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