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राव मालदेवजी में जूझकर मर मिटे । जब यह संवाद शेरशाह को मिला, तब इस पर पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ; परन्तु कुछ देर बाद उसके दिल का बोझ हलका हो जाने पर उसके मुँह से ये शब्द निकल पड़े। ___"खुदा का शुक्र है कि किसी तरह फ़तह हासिल हो गई, वरना मैंने एक मुट्ठी बाजरे के लिये हिन्दुस्थान की बादशाहत ही खोई थी।"
जिस समय राव मालदेवजी को अपने सरदारों की इस वीरता और स्वामिभक्ति का सच्चा समाचार मिला, उस समय यह बहुत ही दुखी हुए । परन्तु समय हाथ से निकल चुका था। साथ ही प्रधान-प्रधान सरदार भी युद्ध में मारे जा चुके थे । अतः सिवा चुप रहने के और कोई मार्ग ही नहीं था । इससे वे सिवाने की तरफ़ चले गए।
इस प्रकार कपट और भाग्य की सहायता से विजयी होकर शेरशाह ने जोधपुर के किले को घेर लेने का प्रबंध किया । यद्यपि वहाँ के सरदारों ने भी बड़ी बहादुरी के साथ इसका मुकाबला किया, तथापि अंत में वे सब-के-सब मारे गएँ । इस प्रकार वि० सं० १६०१ (ई० स० १५४४ ) में यह किला भी शेरशाह के अधिकार में चला गया । इसी अवसर पर उसने मेड़ता राव वीरमदेव को और बीकानेर राव कल्याणमलजी को लौटा दिया, तथा अपनी विजय की यादगार में जोधपुर में दो
१. इस युद्ध में राठोड़ जैतो, राठोड़ कूपों, राठोड़ खींवकरणे उदावत, राठोड़ पंचायणे
करमसोत, सोनगरा अखैराजे और जैसा भाटी नीं/ आदि अनेक राजपूत सरदार और
वीर मारे गए थे। २. इस युद्ध का हाल अधिकतर फ़ारसी तवारीख़ फ़रिश्ता और 'मुन्तखिबुल्लुबाब' से ही
लिया गया है। (तवारीख फरिश्ता, भा० १, पृ० २२७-२२८ और मुन्तखिबुल्लुबाब, हिस्सा १, पृ० १००-१०१) ३. उस समय किले की रक्षा करने में जो सरदार मारे गए थे, उनमें के राठोड़ अचला
शिवराजोत, राठोड़ तिलोकसी वरजांगोत, भाटी जैतमाल और भाटी शंकर सूरावत की छतरियाँ अब तक किले में विद्यमान हैं ।
(१) यह बगड़ी का ठाकुर था । (२) इसके वंशज आसोप आदि के ठाकुर हैं । (३) इसके वंशज रायपुर वगैरा के ठाकुर हैं । (४) इसके वंशज खींवसर वगैरा के स्वामी हैं । (५) यह पाली का ठाकुर था। (६) इसके वंशज लवेरे के स्वामी हैं ।
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