________________
मारवाड़ का इतिहास
मसजिदें बनवाने की आज्ञा दी । इनमें की एक तो किले पर और दूसरी फुलेलाव तालाब के पास बनवाई गई थी। इसी प्रकार उसके सेनापति ने किले के उत्तर-पूर्व की तरफ़ से बाहर आने-जाने के लिये एक रास्ता भी निकाला था । इसके बाद चारों तरफ़ अपने थाने बिठाकरे और जोधपुर का प्रबंध खवासखाँ को सौंप कर वह ( अजमेर से ) रणथंभोर की तरफ चला गया । परन्तु वि० सं० १६०२ ( ई० सन् १५४५) में ही कालिंजर में उसकी मृत्यु हो गई ।
क़रीब डेढ़ वर्ष तक मारवाड़ में मुसलमानों का ही ज़ोर रहा ।
परन्तु इसके बाद कर पाती - नामक
राव मालदेवजी ने जालोर और परबतसर के परगनों से सेना संग्रह गाँव (भाद्राजण के पास ) में अपना निवास कायम किया और कुछ समय के भीतर सब प्रबंध ठीक हो जाने पर वि० सं० १६०३ ( ई० स० १५४६ ) में भांगेसर (पाली परगने ) के शाही थाने पर हमला कर दिया । कुछ ही देर के घमसान युद्ध के बाद पठान भाग गए। इस प्रकार वहाँ पर रावजी का अधिकार हो जाने पर इन्होंने जोधपुर से भी पठानों को मार भगाया ।
अगले वर्ष (वि० सं० १६०४ = ई० सन् १५४७ में ) इनकी सेना ने हम्मीरें से फलोदी छीन ली ।
इसी वर्ष राव मालदेवजी के और उनके ज्येष्ठ पुत्र रामसिंह के बीच मनोमालिन्य हो गया । इससे इन्होंने रामसिंह और उसकी माता ( कछवाहीजी) को गूंदोज (पाली परगने ) में भेज दिया । भटियानी उमादे ने इस राम को अपना दत्तक पुत्र मान लिया था । इसलिये वह भी उसी के साथ वहाँ चली गई ।
१. पहली मसजिद का चिह्नस्वरूप एक छोटा-सा पीर का स्थान जैपोल से किले में घुसते ही दाहिने हाथ की तरफ़ अब तक मौजूद है और दूसरी का अवशिष्टांश शहर में फुलेलाव तालाब के दरवाजे के भीतर का पीर का ताक़ है ।
२. ख्यातों के अनुसार उसी समय नागोर पर भी शेरशाह का अधिकार हो गया था ।
३. इसकी क़बर आजकल शहर में खवासखाँ (खासगा ) पीर की दरगाह के नाम से प्रसिद्ध है । ४. यह राव सूजाजी का पौत्र और नरा का पुत्र था ।
५. कुछ दिन बाद महाराणा उदयसिंहजी ने अपने जामाता राम को मेवाड़ में बुलवा कर अपने पास रख लिया और बाद में उसे केलवा की जागीर दी। इस पर वह भी सकुटुम्ब वहीं जाकर रहने लगा ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
१३२
www.umaragyanbhandar.com