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मारवाड़ का इतिहास
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कोटड़े पर अधिकार कर लिया । रावत भीम हार कर जैसलमेर पहुँचा और उसने रावलजी से कहा कि बाहड़मेर और कोटड़ा जैसलमेर के द्वाररूप हैं । यदि वहाँ पर मालदेवजी के पैर जम गए, तो कुछ काल में ही वे जैसलमेर को भी दबा बैठेंगे । इसलिये आपको पुराना वैर भूल कर मेरी सहायता करनी चाहिए । यह सुन रावल मालदेवजी ने अपने पुत्र हरराज को मय सेना के उसके साथ कर दिया । जब इसकी सूचना रावजी को मिली, तब इन्होंने भी रतनसी और सिंघण को उनका सामना करने की आज्ञा भेज दी । युद्ध होने पर कुछ समय तक तो भाटियों ने भी जमकर राठोड़ों का सामना किया; परन्तु अंत में उनके पैर उखड़ गए और भीम का सारा साज-सामान लूट लिया गया ।
जैसलमेरवाले अब तक दो बार मालदेवजी के विरुद्ध सेना भेज चुके थे । अतः राव मालदेवजी ने उन्हें दंड देने का निश्चय किया । इसी के अनुसार जब सेना की तैयारी हो चुकी, तब इन्होंने चांपावत ( भैरूँदास के पुत्र) जैसा और जैतावत पृथ्वीराजे को जैसलमेर पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी । इन दोनों ने वहाँ पहुँच जैसलमेर को घेर लिया । इसके बाद कुछ ही दिनों के धावों में नगर पर राठोड़ों का अधिकार हो गया और रावलजी को किले में घुस कर बैठना पड़ा । अंत में रावलजी ने दण्ड के रूप में कुछ रुपये देकर राव मालदेवजी से सुलह करली ।
वि० सं० १६१० ( ई० सन् १५५३ ) में मालदेवजी ने वीरमदेव के पुत्र और मेड़ते के शासक जैमल को जोधपुर में उपस्थित होने की आज्ञा भेजी । परन्तु
१. यह पुराना वैर भागते हुए भाटियों से १,००० ऊँटों के छीन लेने का था । इसका उल्लेख ऊपर आ चुका है ।
२. कहते हैं कि इस युद्ध में एक बार पृथ्वीराज एक बड़ के दरख्त की आड़ से शत्रुओं पर आक्रमण कर रहा था । यह देख शत्रुओं ने उस बड़ को ही काट डालने का इरादा किया । परंतु वीर पृथ्वीराज ने उन्हें सफल नहीं होने दिया । इसी से वह बड़ का वृक्ष 'पृथ्वीराज के बड़' के नाम से मशहूर हो गया ।
११ को हुआ था ।
१६०३ ( ई० स०
१५४६ ) में भी
३. इसका जन्म वि० सं० १५६४ की आश्विन सुदी ४. किसी-किसी ख्यात में मालदेवजी का वि० सं० मेड़ते पर फ़ौज भेजना और उसी समय बीकानेरवालों का मेड़तेवालों की सहायता करना लिखा मिलता है । परंतु वि० सं० १६१० ( ई० स० १५५३ ) की चढ़ाई के समय उक्त सहायता का उल्लेख छोड़ दिया गया है। इसी प्रकार राव वीरम की मृत्यु का समय भी कहीं पर वि० सं० १६०० और कहीं पर १६०४ लिखा मिलता है ।.
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