________________
मारवाड़ का इतिहास हाथ आ गया । इसके बाद इन्होंने आगे बढ़ झंझणू' पर भी अधिकार कर लिया। इस युद्ध में राठोड़ कँपा ने खास तौर पर भाग लेकर वीरता दिखलाई थी । इससे प्रसन्न होकर राव मालदेवजी ने झंझणू की जागीर के साथ ही बीकानेर के प्रबंध का अधिकार भी उसे ही दे दिया।
वि० सं० १५६६ (ई० स० १५४२ ) में हुमायूँ (सिन्ध की तरफ़ से उच्च होता हुआ) राव मालदेवजी से मदद प्राप्त करने की आशा से मारवाड़ की तरफ़ चलो और मार्ग में तीन दिन देरावर के किले में रहाँ ।
___ वहाँ से वह फलोदी होकर देईझर नामक गाँव में पहुंचा और जोगीतीर्थ पर मुकाम किया । इस पर राव मालदेवजी ने भी अतिथि के योग्य ही खिलअत और मोहरें (अशरफियां) आदि भेजकर उसका स्वागत किया, और हर प्रकार से मदद देने का वादा कर उसे बीकानेर का परगना खर्च के लिये सौंप देने की प्रतिज्ञा की। इसी बीच शेरखाँ ने अपना वकील भेज मालदेवजी को अपनी तरफ़ मिलाने की कोशिश शुरू
१. यह शेखावाटी प्रान्त में है । २. उस समय राव मालदेवजी का प्रताप बहुत ही बढ़ाचढ़ा था । 'तुजुक जहांगीरी' की भूमिका
में लिखा है कि 'राव मालदेव एक बहुत बड़ा प्रभावशाली राजा था। उसकी सेना में ८०,००० सवार थे । यद्यपि राना सांगा, जो कि बाबर से लड़ा था, धन और साज-सामान में मालदेव की समानता करता था, तथापि राज्य के विस्तार और सेना की संख्या में राव मालदेव उससे बढ़कर था । इसके अलावा जब-जब मालदेव के सैनिकों का राना सांगा
से मुकाबला हुआ, तब-तब प्रत्येक बार विजय मालदेव के ही हाथ रही।'-(देखो पृ०७) 'तबकाते अकबरी' में लिखा है कि बादशाह हुमायूँ लाचार होकर मालदेव की तरफ़, जो उस समय हिंदुस्थान के बड़े राजाओं में था और जिसकी ताक़त और फ़ौज की बराबरी दूसरा कोई राजा नहीं कर सकता था, रवाना हुआ।-( देखो पृ० २०५) ३. यह किला उस समय मारवाड़ और जैसलमेर की सरहद पर था और इस पर मालदेवजी
का अधिकार था । हुमायूँ का ग्राफ़ताबची जौहर अपनी 'तज़करे अल् वाक़यात' नामक पुस्तक में लिखता है कि 'देरावर के किले को देखकर शेख अलीबेग ने बादशाह से पूछा कि क्या यह किला मैं लेलूँ ? इस पर उसने जवाब दिया कि इस किले को लेने से तो मैं दुनिया का बादशाह न हो सकूँगा, पर राव मालदेव ज़रूर ही नाराज़ हो जायगा'
(अँगरेज़ी अनुवाद पृ० ५३)। ४. यह गांव जोधपुर से ४ कोस ईशान कोण में है। ५. हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम-लिखित (हुमायूँ नामा) इतिहास में इस घटना का
उल्लेख है । (नागरी-प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित हिंदी अनुवाद, पृ० १०२)।
१२६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com