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राव जोधाजी जब रावजी को इस झगड़े का हाल मालूम हुआ, तब यह आपमल से नाराज हो गए । यह देख देवीदास ने भाद्राजन पर चढ़ाई कर दी, और आपमल को मार पिता का बदला लिया।
वि० सं० १५२१ (ई० सन् १४६४ ) में (बीसलपुर का स्वामी ) सींधल जैसा पाली के मवेशी पकड़ ले गया । इसकी सूचना मिलते ही कुँवर नींबा ने सोजत से उस पर चढ़ाई की, और मार्ग में (वटोवड़ा गाँव के पास ) उसे जा पकड़ा। यद्यपि युद्ध में सीधल जैसा मारा गया, तथापि अधिक घायल होजाने के कारण पाँच महीने बाद कुँवर नींबा का भी स्वर्गवास हो गया। इस घटना की सूचना से रावजी को बहुत दुःख हुआ । परन्तु अंत में इन्होंने ईश्वर की इच्छा ऐसी ही समझ धैर्य धारण किया, और कुँवर सूजाजी को फलोदी से बुलवाकर सोजत का प्रबंध करने के लिये भेज दिया।
इसी वर्ष छापर-द्रोणपुर के स्वामी मोहिल अजितसिंह ने अपने मंत्रियों के बहकाने में आकर मारवाड़ में उपद्रव करना शुरू किया। कुछ दिन तक तो राव जोधाजी, उसे अपना दामाद समझ, चुप रहे । परन्तु जब मामला बढ़ता ही गया, तब लाचार हो इन्हें उपद्रव को दबाने के लिये सेना भेजनी पड़ी । गगराणे के पास मुकाबला होने पर अजितसिह मारा गया, और उसका भतीजा बछराज छापर-द्रोणपुर का स्वामी हुआ।
१. सोजत का कोट इसी ने बनवाया था। २. यह अपने बड़े भाई सातलजी के पास फलोदी में रहा करते थे। ३. ख्यातों में लिखा है कि वि० सं० १५२१ ( ई० सन् १४६४ ) में अजितसिंह अपनी
सुसराल जोधपुर आया । परंतु जब कई दिन हो जाने पर भी उसने लौटने का इरादा नहीं किया, तब उसके मंत्रियों ने उसे छपर-द्रोणपुर पर जाटों के हमला करने की झूठी खबर कह सुनाई । इस पर वह जोधाजी से मिले विना ही अपने राज्य की रक्षा के लिये तत्काल रवाना हो गया। परंतु जिस समय वह अपने राज्य के निकट पहुँचा, उस समय उन मंत्रियों ने अपनी जान बचाने के लिये उससे कहा कि राठोड़ों का विचार आपको मारकर आपके अधिकृत प्रदेश को ले लेने का था। इसी से, आपको उनके पंजे से बचाने के लिये, हम लोगों ने यह चाल चली थी। अजितसिंह ने उनके कहने को सच मान लिया और इसी का बदला लेने के लिये वह मारवाड़ में उपद्रव करने लगा।
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