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मारवाड़ का इतिहास
वि० सं० १५१३ (ई० स० १५३६ ) में मालदेवजी का विवाह जैसलमेर के रावल की कन्या से हुआ । यद्यपि इस अवसर पर रावल लूणकरणजी ने इनको मारने
१. इस रानी का नाम उमादे था। यह जैसलमेर के रावल लूणकरणजी की कन्या थी ।
विवाह की रात्रि को ही घटनावश यह रानी रावजी से रूठ गई और इनके बहुत कुछ अनुनय विनय करने पर भी इसने जीते जी अपना मान नहीं छोड़ा। वि० सं० १५६६ (ई० सन् १५३६) में अजमेर के डेरे पर एक बार रावजी की आज्ञा से बारठ ईश्वरदास के अत्यधिक अनुनय विनय करने पर उमादे का मान कुछ नरम हो गया था। परन्तु उसी अवसर पर रावजी को बीकानेर की चढ़ाई का प्रबन्ध करने के लिये जोधपुर आना पड़ा । अतः वह बात वहीं रुक गई । इसके बाद वि० सं० १५६६ (ई० स० १५४२) में जब रावजी को अपने विरुद्ध शेरशाह की चढ़ाई की सूचना मिली, तब इन्होंने ईश्वरदास को लिखा कि तुम उमादे को तो हिफ़ाज़त के साथ अजमेर से जोधपुर ले आयो और वहाँ के किले में शीघ्र ही युद्ध-सामग्री एकत्रित की जाने का प्रबंध करवा दो । यह समाचार सुन उमादे ने ईश्वरदास से कहा कि शत्रु का आगमन जान लेने के बाद मेरा किला छोड कर चला जाना बिलकल ग्रनचित होगा। इससे मेरे दोनों कलों अर्थात् नैहर और सुसराल पर कलंक लगेगा । अतः आप रावजी को लिख दें कि वह यहाँ का सब प्रबंध मुझी पर छोड़ दें। वह यह भी विश्वास रक्खें कि शत्रु का आक्रमण होने पर मैं राना साँगा की रानी हाडी कर्मावती के समान अग्नि में प्रवेश न कर शत्रु को मार भगाऊँगी और यदि इसमें सफल न हुई तो वीर क्षत्रियाणी की तरह सम्मुख रण में प्रवृत्त होकर प्राण त्याग करूँगी । जब रावजी को पत्र द्वारा इस बात की सूचना मिली, तब इन्होंने ईश्वरदास को लिखा कि तुम हमारी तरफ़ से रानी को कह दो कि अजमेर में तो हम स्वयं शेरशाह से लड़ेंगे । इसलिये वहाँ का प्रबंध तो हमारे ही हाथ में रहना उचित होगा । हाँ, जोधपुर के किले का प्रबंध हम तुम्हें सौंपते हैं । अतः तुम शीघ्र ही यहाँ चली आओ । रानी ने भी अपने पति की इस आज्ञा को मान लिया और वह अजमेर का किला रावजी के सेनापतियों को सौंप जोधपुर की तरफ रवाना हो गई। परन्तु जैसे ही यह समाचार रावजी की अन्य रानियों को मिला, वैसे ही वे सौतिया डाह से घबरा गई । अतः उन्होंने उसके जोधपुर आगमन में बाधा डालने के लिये बारठ आसा को रवाना किया । यह आसा बारठ ईश्वरदास का चचा था । रानियों ने इसे बहुत कुछ
लालच देकर इस कार्य के लिये तैयार किया था। इसके बाद जिस समय उमादे की सवारी जोधपुर से १५ कोस पूर्व के कोसाना गांव में पहुँची, उस समय आसा भी उसकी पीनस के पास जा पहुँचा । संयोगवश ईश्वरदास उस समय कहीं इधरउधर गया हुआ था। इससे मौका पाकर आसा ने यह दोहा ज़ोर से पढ़ा
"माँन रखे तो पीव तज, पीव रखे तज माँन । दोय गयंदन बंध ही, एकण खंभे ठाँण ।"
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