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राव मालदेवजी के बीच झगड़ा उठ खड़ा हुआ । इस माके से लाभ उठाने के लिये इन्होंने भी बीकानेर की चढ़ाई का ध्यान छोड़ पूर्व की तरफ़ के देश विजय करने का विचार किया । इसी के अनुसार यह अपनी सेना को सजाकर हिंदौन से आगे बढ़ गए और बयाने तक के प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया ।
पहले लिखा जा चुका है कि वीरम ने बोयल और वणहड़े में अपना निवास कायम किया था। परंतु कुछ समय बाद जब वहां पर उसका प्रभाव बढ़ने लगा, तब मालदेवजी ने उसका अधिकृत प्रदेश छीन लेने के लिये अपनी सेना भेज दी । यह देख वीरम वि० सं० १५६७ (ई० स० १५४० ) में मांडू के बादशाह सुलतान कादिर के पास चला गया और उसकी सलाह से आगे दिल्ली के बादशाह शेरशाह के पास जाने को रवाना हुआ । मार्ग में रणथंभोर के हाकिम से उसकी मित्रता हो गई । इससे उसी के साथ वह दिल्ली जा पहुँचा । वहीं पर वि० सं० १५१८ ( ई० स० १५४१ ) में इसकी मित्रता बीकानेर के स्वर्गवासी राव जैतसीजी के छोटे पुत्र भीम से हुई । अतः ये दोनों मिलकर शेरशाह को मालदेवजी के विरुद्ध भड़काने लगे।
रावजी की सेना ने भी वीरम के बोयल से भाग जाने पर टोंक और टोडे की तरफ़ के सोलंकियों पर चढ़ाई की और उनसे दंड लेकर आगे जौनपुर ( मेवाड़ ) में अपनी चौकी कायम की। फिर वहां से पूरब की तरफ़ जाकर सांभर, कासली, फतेपुर, रेवासा, छोटा उदेपुर (जैपुर राज्य में ), चाटसू, लवाण और मलारणा आदि पर अधिकार कर लिया और अनेक स्थानों पर रक्षा के लिये किले भी बनवा लिए । इन कार्यों से निपटकर इस सेना ने सांचोर के चौहानों को हराया और फिर गुजरात की तरफ़ राधनपुर और खाबड़ तक के प्रदेशों पर अधिकार कर नाबरा गांव को लूट लिया।
१. वी. ए. स्मिथ ने लिखा है कि ई० स० ५५३६ के जून में शेरशाह ने हुमायूँ को गंगा
के किनारे चौसा में ( जो शाहाबाद जिले में है ) हराकर भगा दिया था (ऑक्सफ़ोर्ड
हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया, पृ० ३२६)। २. इस प्राचीन छप्पय से इन विजयों की पुष्टि होती है
जोधपुरे ऊठिये चढ़े सना चतुरंगा । समियाणौ घूघरोट अणी चाढियौ अलंगा । भाद्राजण पाधरौ कियौ हय पाय उलंडे । जालोरी साचोर धरात्रय खाबड खंडे । मरुधराधीश भ्रम मालदे वैराई भाखर वले । दीधा प्रथम भड मारकै कलह पांण नाबर कलै ।
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