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पारगड़ का इतिहास
१६. राव सातलजी
यह राव जोधाजी के तृतीय पुत्र थे और उनके बाद वि० सं० १५४५ की ज्येष्ठ सुदी ३ (ई० सन् १४८८ की १४ मई) को गद्दी पर बैठे' । इनका जन्म वि० सं० १४९२ (ई० सन् १४३५ ) में हुआ था। इनकी स्त्री कुंडल के स्वामी भाटी देवीदासजी की कन्या थी । इसी से वि० सं० १५१४ ( ई० सन् १४५७) के करीब जब देवीदासजी जैसलमेर के रावल हो गए, तब उन्होंने कुंडल का प्रांत अपने दामाद सातलजी को सौंप दिया । इसकी पुष्टि वि० सं० १५१५ (ई० सन् १४५८) के कोलूँ (फलोदी परगने ) से मिले लेख से भी होती है ।
१. पव जोधाजी के ज्येष्ठ पुत्र नींबा की मृत्यु उनके जीते-जी हो गई थी । दूसरा पुत्र
जोगा, जिसका कुछ हाल पहले लिखा जा चुका है, बड़ा आलसी था। इसी से राज-तिलक का समय आ जाने पर भी वह नहाने-धाने से कारिग न हो सका । अंत में मुहूर्त को टलता देख सरदारों ने उसके छोटे भाई सातलजी को गद्दी बिठा दिया । इसलिये जोगा को बाद में (बोलाड़े परगने के ) खारिया आदि कुछ गांव जागीर में लेकर ही संतोष करना पड़ा। वहीं से मिले एक लेख से जोगा का वि० सं० १५७० (ई० सन् १५१३)
में स्वर्गवासी होना प्रकट होता है । कहते हैं, राव सातलजी ने अपने राज्याभिषेक के समय (जोधपुर परगने का) लूण वा-चारणां नामक गांव एक चारण को दान दिया था। २. राव सातलजी की भटियानी रानी फूलकुँवर ने (वि० सं० १५४७ ई० सन् १४६० में)
जोधपुर नगर का फुलेलाव-तालाब बनवाया था । ३. यह प्रदेश फलोदी के पास है । पौकरन के पौकरना गटोड़ों और भाटियों के बीच बराबर
लड़ाइयं होती रहती थीं। इसी से तंग आकर देवीदासजी ने उक्त प्रदेश सातलजी को
सौंप दिया। ४. वहां पर इस समय धांधल गठोड़ों का अधिकार है। ५. वि० सं० १२३६ (ई. सन् ११७६ ) के कल्याणगयजी के मंदिर से मिले लेख से
उस समय फलोदी-नगर का नाम अजयपुर होना और वहां पर चौहान-नरेश पृथ्वीदेव का
राज्य होना प्रकट होता है। ( जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भा० १२, पृ० ६३) ६. यह लेख धांधन के पुत्र पाबू के मंदिर के कीर्तिसभ पा खुटा है । उस पर एक तरफ तो
वि० सं० १५१५ को भादों सुदी ११ (ई. सन् १४५८ की २० अगस्त) को उस कीर्ति-स्तंभ के स्थापन करने आदि का उल्लेख है, और दूसरी तरफ 'महाराय जोधासुत राय श्री सातल विजय राज्ये" लिखा है । (जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भा० १२,पृ०१०८
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