________________
राव सूजाजी अत्यधिक घायल हो जाने के कारण उसी रात को इनका स्वर्गवास हो गयां । यह घटना वि० सं० १५४८ की चैत्र सुदी ३ (ई० सन् १४९१ की १३ मार्च) की है ।
१७. राव सूजाजी __ यह राव सातलजी के छोटे भाई थे और उनके बाद वि० सं० १५४८ की वैशाख सुदी ३ (ई० सन् १४९१ की १२ अप्रेल ) को, ५२ वर्ष की अवस्था में, उनके उत्तराधिकारी हुए। इनका जन्म वि० सं० १४१६ की भादों बदी ८ (ई० सन् १४३६ की २ अगस्त ) को हुआ था। वि० सं० १५२१ ( ई० सन् १४६४) में राव जोधाजी ने सोजत का प्रबन्ध इन्हें सौंप दिया था। इससे वि० सं० १५४५ (ई० सन् १४८८ ) में जब वहाँ पर मुसलमानों ने आक्रमण किया, तब इन्होंने बड़ी वीरता से उनका सामना कर उस प्रदेश की रक्षा की ।
राव सातलजी ने इनके पुत्र नरा को गोद लेने के इरादे से अपने पास रख लिया था । परन्तु उन ( सातलजी) की मृत्यु के बाद यह तो उनके उत्तराधिकारी के रूप में जोधपुर की गद्दी पर बैठे, और नरा को, समझाकर, फलोदी का प्रान्त जागीर में दे दिया। इसके बाद वि० सं० १५५५ ( ई० सन् १४९८ ) में जब बाहड़मेर के राठोड़ों की सहायता से पौकरना राठोड़ों ने नरा को मार डाला, तब राव सूजाजी ने चढ़ाई कर बाहड़मेर, कोटड़ा आदि को लूट लिया।
१. कर्नल टॉड ने सातलजी का सहरिया (सराई ) जाति के खाँ को मारकर मरना, इस घटना
का वि० सं० १५७२ (ई. सन् १५१६ ) में राव सूजाजी के समय होना और इस युद्ध में उन (सूजाजी) का मारा जाना लिखा है (ऐनाल्स ऐंड ऐंटिकिटीज़ ऑफ़ राजस्थान,
भा० २, पृ० १५० और ६५२ ), परन्तु यह ठीक नहीं है। २. जोधपुर-राज्य की तरफ से पहले चैत्र सुदी ३ को गौरी और ईश्वर दोनों की मूर्तियों का
पूजन किया जाता था। परन्तु सातलजी के उस दिन स्वर्गवास करने के बाद से केवल
गौरी की मूर्ति का ही पूजन होता है। ३. ख्यातों में लिखा है कि तुवर अजमाल के पौत्र ( रणसी के पुत्र ) रामदेव ने तुवरावाटी
( जयपुर-राज्य ) की तरफ से ग्राकर पौकरन पर अधिकार कर लिया था। कुछ वर्ष बाद जब उसने अपनी भतीजी ( या कन्या ) का विवाह रावल मल्लिनाथजी के पौत्र (जगमाल के पुत्र) हम्मीर से किया, तब पौकरन उसे दहेज़ में दे दिया, और स्वयं वहाँ से ५ मील उत्तर रुणेचे में जा बसा। वहीं पर उसकी और उसके पूर्वजों की
१०७
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com