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मारवाड़ का इतिहास
ख्यातों से ज्ञात होता है कि राव गाँगाजी के और उनके बड़े भाई वीरमके बीच बहुधा झगड़ा चलता रहता था। इसीसे रावजी ने उसकी (सोजत की ) जागीर के कई गाँव छीन लिए, और धोलेराव आदि में अपनी चौकियाँ बिठा दीं। ___ वि० सं० १५८७ ( ई० सन् १५३१ ) में होली के अवसर पर, जिस समय धोलेराव की चौकी के सरदार अपनी-अपनी जागीर के गाँवों में गए हुए थे, उस समय वीरम के पक्षवालों ने आक्रमण कर उस चौकी को लूट लिया । इसकी सूचना मिलने पर वि० सं० १५८८ (ई० सन् १५३१ ) में स्वयं राव गाँगाजी ने सोजत पर चढ़ाई की । युद्ध होने पर वीरम का प्रधान कर्मचारी मूता रायमल मारा गया, और सोजत पर रावजी का अधिकार हो गया । इसके बाद इन्होंने वीरम को निर्वाह के लिये बाला नामक गाँव जागीर में देकर उसे वहाँ रहने के लिये भेज दिया। इस घटना के बाद राज्य में पूर्ण शान्ति हो गई।
को समझाकर देवी के मन्दिर की तरफ़ भेजा । यह देख वहां के चौहानोंने अपने कार्यकर्ताओं को उनके रहने आदि का प्रबन्ध कर देने की आज्ञा दी । परन्तु रावजी के भेजे हुए पुरुषोंने चौहानों के भेजे हुए उन (चौदह ) आदमियों को मारकर शेखाके
साथके वैरका बदला ले लिया । किसी-किसी ख्यात में शेखाका युद्ध में हारकर मेवाड़ जाना और वहां पर महाराणा की तरफ से किसी युद्ध में लड़कर वीरगति प्राप्त करना भी लिखा मिलता है । परन्तु नहीं कह सकते, यह कहां तक ठीक है।
इस युद्ध में ऊहड हरदास भी मारा गया । यह राजकुमार मालदेवजी से नाराज़ होकर पहले वीरम के पास सोजत पहुँचा, और उसे राव गाँगाजी के विरुद्ध भड़काने लगा । बादमें इसीने शेखाके पास जाकर उसे रावजी से युद्ध करने के लिये तैयार किया । १. राव गाँगाजी ने ख़याल किया कि जैता की बगड़ी की जागीर सोजत में होने से कहीं यह
भी वीरमदेव से न मिल जाय; इसीलिये उसे बगड़ी छोड़कर पीपाड़ में आ जाने की सलाह दी । इसपर उसके प्रधान रेडा ने रावजी का संदेह मिटाने के लिये वीरमदेव के प्रधान मूता रायमल को धोका देकर मारने का उद्योग किया । परन्तु इसमें उसे सफलता
नहीं हुई, उलटा रायमल के हाथ से वह ख़ुद मारा गया। इसके बाद राव गांगाजी ने जैताजी के मारफत कूँपाजी को भी जो वीरमजी की तरफ़ थे अपने पास बुलवा लिया । इससे वीरमदेव का बल बहुत घट गया । २. ख्यातों में लिखा है कि वीरम की सहायता के लिये मेवाड़ से महाराणा रत्नसिंहजी (द्वितीय)
ने भी सेना भेजी थी । परन्तु राव गाँगाजी ने उसे सारण (गाँव) के युद्ध में हरा दिया। इसके बाद रावजीने मेवाड़वालों से गोडवाड़ का बहुत-सा प्रदेश भी छीन लिया ।
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