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राव गाँगाजी सूचना गाँगाजी को मिली, वैसे ही इन्होंने सेवकी (गाँव) तक आगे बढ़ उसका सामना किया' । युद्ध होने पर शेखा मारा गया, और दौलतखाँ भागकर नागोर चला गया । इस युद्ध में बीकानेर नरेश राव जैतसीजी ने भी, जो अपनी कुलदेवी के दर्शनार्थ नागाने की तरफ़ गए हुए थे, राव गाँगाजी का पक्ष लिया था । यह घटना वि० सं० १५८६ ( ई० सन् १५२९ ) की है ।
परन्तु सरदारोंने चुपचाप गांगाजी को गद्दी पर बिठा दिया । इसीसे शेखा राव गाँगाजी से नाराज़ था । दूसरा वीरम के पक्षवालों को जब जब मौका मिलता था, तब-तब वे उसे राव गाँगाजी के विरुद्ध भड़काते रहते थे। किसी-किसी ख्यात में सिरोही के राव अखैराजजी की शिकायत पर शेखा की जागीर पीपाड़ के एक गांव के ज़ब्त किए जानेके कारण और किसी में ऊहड हरदास द्वारा उकसाए जाने के कारण इस युद्ध का होना लिखा है ।
१. ख्यातों में लिखा है कि युद्ध के आरम्भ में जब सरदारों ने राव गांगाजी को तामजाम में ऊँघते हुए देखा, तब उन्होंने इनसे सचेत हो जाने की प्रार्थना की । इस पर रावजीने उन्हें आश्वासन देकर कहा कि हमने इस गृह कलह में आप लोगों की सहानुभूति किसके पक्ष में है, यह जानने के लिये ही ऐसा अभिनय किया था । किन्तु अब हमें आप लोगों.. पर विश्वास हो गया है । इतना कहकर ये शीघ्र ही घोड़े पर सवार हो लिए और शत्रु के सामने पहुँच उससे युद्ध करने लगे । कुछ ही देर में इनके तीरसे ज़ख्मी होकर दौलतख़ाँ का एक हाथी भड़क गया, और उसकी सेनाको कुचलता हुआ मेड़ते की तरफ भाग चला । उसके वहां पहुँचने पर ( दूदा के पुत्र ) राव वीरम ने उसे पकड़वा कर अपने यहां रख लिया ।
राव गाँगाजी ने मेड़ते के राव वीरम को भी इस युद्ध में साथ देने के लिये बुलवाया था । परन्तु उसने इस गृह कलह में भाग लेने से इनकार कर दिया । इससे राव गाँगाजी उससे अप्रसन्न हो गए। इसके बाद जब इन्हें रणक्षेत्र से भागे हुए दौलतखाँ के हाथी के मेड़ते पहुँचने का समाचार मिला, तब इन्होंने ( गांगाजीने ) उस हाथी को ले आने के लिये अपने आदमी वहां भेजे । परन्तु वीरमने उसके देने से इनकार कर दिया । इससे इनकी अप्रसन्नता और भी बढ़ गई । इसके कुछ दिन बाद, जिस समय राव गाँगाजी और राजकुमार मालदेवजी शिकार करते हुए मेड़ते की तरफ जा निकले, और वीरमने इन्हें अपने यहां चलकर भोजन करने के लिये कहा, उस समय भी कुँवर मालदेवजी ने उस हाथी के लिये बिना भोजन करना स्वीकार न किया । अन्तमें जब राव गांगाजी और राजकुमार मालदेवजी जोधपुर लौट आए, तब वीरम ने इस झगड़े को शान्त करने के लिये वह हाथी जोधपुर भेज दिया । परन्तु अभाग्यवश वह मार्ग में ही मर गया । इससे यद्यपि रावजी तो सन्तुष्ट हो गए, तथापि कुँवर मालदेवजी को इसमें राव वीरम के षड्यन्त्र का सन्देह हो जाने से वह उससे और भी अधिक नाराज़ हो गए ।
२. मरते समय शेखाने राव गाँगाजी से कहा था कि सूराचन्द के चौहानोंने मेरे एक आदमी को, उधर से जाते समय पकड़कर देवी की बलि चढ़ा दिया था । इसलिये हो सके, तो उनसे इसका बदला ले लेना । इसीके अनुसार कुछ दिन बाद, इन्होंने अपने आदमियों
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