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मारवाड़ का इतिहास
इनके १० पुत्र थे' । १ बाघा, २ शेखा, ३ नरा, ४ देवीदास, ५ ऊदा, ६ प्रयागदास, ७ साँगा, ८ नापा, ६ पृथ्वीराज और १० तिलोकसी।
१. कर्नल-टॉड ने इनके पाँच पुत्रों के नाम इस प्रकार लिखे हैं१. बाघा, २ ऊदा, ३ सागा, ४ प्रयाग और ५ वीरमदेव (ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़
ऑफ़ राजस्थान, भा॰ २, पृ० ६५२ )। २. इनके ७ पुत्र थे । १ वीरम, २ गांगाजी, ३ प्रताप, ४ भीम, ५ खेतसी, ६ सींगण और
७ जैतसी। ख्यातों में लिखा है कि जिस समय कुँवर बाघाजी सख्त बीमार हुए, और उनके बचने की आशा न रही, उस समय उन्होंने अपने पिता राव सूजाजी से अपने स्थान पर अपने पुत्र वीरम को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की प्रार्थना की थी, और सूजाजी ने बाघाजी के छोटे भ्राता शेखा की सम्मति से इसे स्वीकार कर लिया था। इसी के अनुसार समय आने पर सब सरदार वीरम का राज्याभिषेक करने को किले पर इकटे हुए | मुहूर्त में देर होने से जब उनके साथ के लड़कों को, जो उत्सव देखने को किले पर आए थे, भूख लगी, तब सरदारों ने वीरम की माता से उनके लिये भोजन का प्रबन्ध करवा देने की प्रार्थना की । परन्तु उसने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इसके बाद जैसे ही इसकी सूचना गाँगाजी की माता को मिली, वैसे ही उसने ताज़ा भोजन बनवाकर उन बालकों और सरदारों के लिये भिजवा दिया। इस पर सरदारों ने मुहूर्त के ठीक न होने का बहाना कर वीरम का राज्याभिषेक रोक दिया, और शीघ्र ही गाँगाजी को मेवाड़ से बुलवा कर जोधपुर की गद्दी पर बिठा दिया। इसके बाद वीरम को सोजत का परगना जागीर में मिला। उसी दिन से मारवाड़ में यह कहावत चली है-"रिड़मलां थापिया तिके राजा।" अर्थात् रिड़मलजी के वंशज सरदारों ने जिसे गद्दी पर बिठा दिया, वही राजा हो गया।
३. इसने राव सूजाजी के राज्य-समय सींघलों से जैतारण छीन लिया था। ४. कहीं-कहीं इसके एवज़ में गोपीनाथ और जोगीदास नाम मिलते हैं ।
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