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राव गाँगाजी
१८. राव गाँगाजी
यह राव सूजाजी के पौत्र और राजकुमार बाघाजी के द्वितीय पुत्र थे। इनका जन्म वि० सं० १५४० की वैशाख सुदी ११ (ई० सन् १४८३ की १८ अप्रैल) को हुआ था, और राव सूजाजी के बाद वि० सं० १५७२ की मँगसिर वदी ३ (ई० सन् १५१५ की २५ अक्टोबर ) को यह जोधपुर की गद्दी पर बैठे' ।
वि० सं० १५७४ (ई० सन् १५१७ ) में महाराणा साँगाजी की प्रार्थना पर यह अपमी सेना लेकर उनकी सहायता को गए, और इन्होंने गुजरात के शासक मुजफ्फरशाह द्वितीय के प्रतिनिधिको भगाकर राव रायमलजी को ईडर की गद्दी दिलाने में उनकी सहायता की। इसके बाद वि० सं० १५७७ (ई० सन् १५२०) में
१. कहीं-कहीं इस घटना का समय मँगसिर सुदी १२ (१८ नवम्बर) लिखा मिलता है।
ख्यातों में लिखा है कि उन दिनों महाराणा साँगाजी और गुजरात के सुलतान के बीच, ईडर के लिये, मगड़ा चल रहा था । इसीसे राव सूजाजी ने इन्हें (गाँगाजी को) अपनी सेना साथ देकर राणाजी की सहायता में मेवाड़ भेज दिया था। सरदारों के बुलाने पर
वहीं से आकर यह जोधपुर की गद्दी पर बैठे। २. कहीं-कहीं इस घटना का समय वि० सं० १५७३ (ई० स० १५१६) भी लिखा मिलता है । उस समय ईडर पर (राव सीहाजी के पुत्र ) सोनगजी के वंशजों का अधिकार था। जिस समय ईडर-नरेश सूरजमलजी का देहान्त हुआ, उस समय उनके पुत्र रायमलजी गद्दी पर बैठे । परन्तु उनकी अवस्था छोटी होने के कारण उनके चचा भीमजी ने शीघ्र ही उन्हें हटा कर वहाँ पर अपना अधिकार कर लिया । यह देख रायमलजी महाराणा साँगाजी के पास चले गए । उन्होंने भी अपनी कन्या का विवाह उनके साथ करना निश्चित कर उन्हें अपने पास रख लिया । वि० सं० १५७१ (ई० स० १५१४) में जब राव भीमजी मर गए और उनके पुत्र भारमलजी गद्दी पर बैठे, तब राव रायमलजी ने महाराणा साँगाजी और जोधपुर वालों की सहायता से ईडर पर फिर अधिकार कर लिया । परन्तु अगले वर्ष गुजरात के सुलतान मुजफ्फरशाह द्वितीयने रायमलजी को हटाकर भारमल को वहाँ का अधिकार दिलवा दिया । इसीसे साँगाजी ने रायमलजी को फिर से ईडर का राज्य दिलवाने के लिये डूंगरसिंह को भेज कर राव गाँगाजी को भी अपनी सहायता में बुलवाया था । वि० संवत् १५७४ (ई० सन् १५१७) में दिल्ली के बादशाह इब्राहीम लोदी ने मेवाड़ पर चढ़ाई की थी, और उसमें उसे हार कर भागना पड़ा था । सम्भव है, वि० सं० १५७४ (ई. सन् १५१७) की उपर्युक्त घटना का इसी अवसर से सम्बन्ध हो।
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