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राव सातलजी राव सातलजी ने पुत्र न होने के कारण अपने भतीजे ( सूजाजी के पुत्र ) नरी को गोद लेने के विचार से अपने पास रख लिया था । कहते हैं, पौकरन के पास का सातलमेर शहर राव सातलजी ने ही अपने नाम पर बसाया था ।
वि० सं० १५४७ ( ई० सन् १४९० ) में अजमेर के हाकिम मल्लूखाँ ( मलिक यूसुफ़ ) ने राव सातलजी के भाई वरसिंह को अजमेर बुलवा कर धोके से पकड़ लियां । इसकी सूचना मिलते ही जोधपुर से राव सातलजी ने और बीकानेर से राव बीकाजी और दूदाजी ने अजमेर पर चढ़ाई की । इस पर मल्लूखाँ ने उस समय तो वरसिंह को छोड़ दिया, परन्तु शीघ्र ही तैयारी कर इसका बदला लेने के लिये
इसकी लिखावट से ज्ञान होता है कि सतलजी उस समय भी स्वतंत्र रूप से वहाँ का शासन करते थे ।
१. कर्नल टॉड ने नरा को सूजा का पौत्र ( और वीरमदेव का पुत्र ) लिखा है । (ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भा० २, पृ० ६५२ ) परन्तु यह ठीक नहीं है ।
२. वि० सं० १५३२ ( ई० सन् १४७५ ) का एक लेख फलोदी के किले के तीसरे दरवाज़े पर खुदा है ( जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भा० १२, पृ० ६४ ) । इससे ज्ञात होता है कि ( नरसिंह ) नरा ने इसी वर्ष उस किले का जीर्णोद्धार करवा कर यह द्वार बनवाया था | इस लेख में नर। के पिता का नाम राय सूरजमल लिखा है । इससे प्रकट होता है कि राव सातलजी ने उसे उस समय तक भी गोद नहीं लिया था ।
३. यह नगर इस समय बिलकुल उजड़ी हुई दशा में है । किसी-किसी ख्यात में इस नगर का नरा द्वारा सातलजी की यादगार में बसाया जाना भी लिखा मिलता है ।
४. किसी-किसी ख्यात में इसका नाम सिरियाखाँ लिखा है ।
५. ख्यातों में लिखा है कि उस वर्ष मारवाड़ में अकाल होने के कारण वरसिंह ने मेड़ते से जाकर सांभर को लूट लिया । इस पर जब वहाँ के चौहान शासक ने मल्लूखों के पास शिकायत लिख भेजी, तब उसने वरसिंह को अजमेर बुलवा कर क़ैद कर लिया । इससे यह भी ज्ञात होता है कि उस समय अजमेर पर मुसलमानों का अधिकार था, और साँभर के चौहान अजमेरवालों के अधीन थे |
६. मिस्टर एल० पी० टैसीटोरी ने एक पुराना गीत उद्धृत किया है। उससे प्रकट होता है कि राव सावलीने, जैसलमेर रावल देवीदासजी और पूंगल के राव शेखा आदि क साथ मिल कर, राव बीकाजी के विरुद्ध चढ़ाई की थी। परन्तु उसमें यह सफल न हो सके (जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भा० १३, पृ० २३५-२३६ ) । परन्तु इतिहास से इसकी पुष्टि नहीं होती ।
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