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राव जोधाजी अपने चचेरे भाई वरजांग को उनके मुकाबले को भेजा । कुछ ही दिनों में बिहारियों और देवड़ों' को राठोड़ों से संधि करनी पड़ी।
वि० सं० १५४३ (ई० सन् १४८६ ) में आमेर-नरेश चंद्रसेनजी ने सांभर पर अधिकार करने के लिये सेना भेजी । परंतु राव जोधाजी के समय पर उसकी रक्षा का प्रबंध कर देने से वह सफल न हो सकी ।
वि० सं० १५४४ (ई० सन् १४८७ ) में जोधाजी की आज्ञा से उनके पुत्र दूदा ने जैतारण के सींधल मेघा पर चढ़ाई की । युद्ध होने पर मेघा मारा गया ।
इसी वर्ष (जोधाजी का भाई ) कांधल अपने भतीजे बीकाजी की तरफ़ से एक प्रदेश के बाद दूसरा प्रदेश विजय करता हुआ, हिसार तक जा पहुँचा । उस समय वहां पर बहलोल लोदी का अधिकार था, और उसकी तरफ़ से सारंगखाँ उस प्रदेश की देख-भाल करता था । कांधल की चढ़ाई के कारण जब वहां पर अराजकता फैलने लगी, तब सारंगखाँ ने एक रोज़ अचानक हमला कर उसे मार डाला । इसकी खबर मिलते ही जोधपुर से जोधाजी ने और बीकानेर से बीकाजी ने सारंगखाँ पर चढ़ाई की । यद्यपि युद्ध के समय उसकी तरफ़ से भी खूब दृढ़ता से मुकाबला किया गया, तथापि अंत में उसके मारे जाने से उसकी फ़ौज को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। इसके बाद लौटते समय राव जोधाजी बीकानेर में ठहरे, और बीकाजी को बीकानेर का और बीदा को छापर-द्रोणपुर का स्वतंत्र शासक बना दिया । साथ ही बीकाजी को
१. वि० सं० १५३८ ( ई० सन् १४८१ ) में राव जोधाजी का पुत्र वणवीर अपनी सुसराल
सिरोही गया था । परंतु उसी समय वहां पर शत्रु के हमला कर देने के कारण वह भी
देवड़ों की तरफ़ से लड़ता हुआ युद्ध में मारा गया । (इसकी मृत्यु के समय का सूचक एक लेख खींवसर के पूरासर तालाब पर लगा है। ) २. मेघा के पिता नरसिंह ने राव सत्ताजी के पुत्र (नरबद के भाई ) आसकरन को मारा था ।
इसी का बदला लेने के लिये यह चढ़ाई की गई थी। ३. ख्यातों में लिखा है कि लौटते समय मार्ग में एक हकले और तुतले चमार को अपनी
तारीफ करते देख जोधाजी ने उसे वहीं आस-पास की कुछ भूमि दे दी। इसके बाद उसी भूमि पर उस चमार ने जोधावास गांव बसाया, जो अब तक उसके वंशजों के
अधिकार में है। ४. उस समय जोधाजी ने उस प्रांत के लाडनू-नामक नगर को जोधपुर-राज्य के अंतर्गत
कर लिया ।
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