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राव जोधाजी वि० सं० १५१७ (ई० सन् १४६० ) में इन्होंने मंडोर की चामुंडों की मूर्ति को मँगवाकर जोधपुर के किले में स्थापित किया, और अगले वर्ष (वि० सं० १५१८ = ई० सन् १४६१ में ) अपने पुत्र वरसिंह और दूदा को मेड़ता नामक नगर पर अधिकार करने के लिये भेजा । उस समय यह नगर और प्रांत अजमेर के सूबेदार के शासन में था । परन्तु दोनों भाइयों ने वहाँ पहुँच उक्त नगर के साथ ही उस प्रांत के ३६० गाँवों पर भी अधिकार कर लिया । इसके बाद प्राचीन बस्ती के दक्षिण में नया मेड़ता नगर बसाया गया ।
इस प्रकार राज्य के कामों से निबट कर इसी वर्ष ( वि० सं० १५१८ = ई० सन् १४६१ में ) राव जोधाजी ने गया की यात्रा की । मार्ग में जिस समय यह गरे पहुँचे, उस सयम बादशाह बहलोल लोदी के कृपापात्र राठोड़ कर्ण ने इन्हें अपना
( ई० सन् १५७६ ) तक यह विद्यमान था । आगे एक पुरानी बही से इस दानपत्र की नकुल उद्धृत की जाती है
श्रीमहामायाजी श्रीनागणेचीयांजी
श्रीरामजी श्रीकीसनजी
सही
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महारावजी श्रीजोधाजी वचनायते तथा कनोज सुं सेवग लुंबरिसी जातरो सारसुत प्रोजो ल्होड सेवा लेने आयौ सु राठौड़ वंसरा सेवगऐ छै ठेटु कदीम सुं मुलगा यांरो सेवगपणो इणां रो है । पहली वंसरै माताजी श्रीआदपंखणीजी चक्रेश्वरीजी पछै रावजी श्रीधूहडजी नैं वर दीधो नागरा रूप सुं दरसण दीधौ तरे नागणेचियां कहांणी सु धूहडजीरो तांबापत्र प्रजा रिषबदेव श्रीपतरा बेटा कने वाचनै मैं ही तांबापत्र करदीधौ उण मुजब राठौड़ वंसरे सेवग पणारौ लवाजमो जायां परणियां नेग दापौ राजलोक रावलै करै सु वरत वडूलियौ सरबेत इणांरो नेग है ने राठौड वंस गोतमस गोत्र अकरूर साखारी लार इतरा जणा है पीरोत सेवड प्रोजा सेवग लोड मथेरण रुदरदेवा सो देस परदेस मांहरी आल प्रलाद पीडी दरपीडी प्रोजा रिषबदेव री आाल प्रलाद ने सेवग कर मानसी मांहरी आल प्रलाद असलवंस होसी सु इणांनु दत देसी । लिखतं पं । हरीदास आईदासोत महारावजी रा हुकम सुं सं० १५१६ रा मीगसर सुद २ दुवै श्रीमुख परवानगी राठौड करमसी मुकाम सुखवास जोधपुर | सिलोक | सहदत परदत जे लोपंती वीसंधरा ते नरा नरग जावंती जबलग चंद दीवाकरा ॥ १ ॥ साख छै॥ दुवो ॥ अखरज चांपो करमसी सको भायांरी साख, राव समप्यो रीत सुं उथपै तिकां तलाक ॥२॥
१. यह पड़िहारों की कुल देवी थी । परंतु राठौड़ों ने भी मंडोर का राज्य प्राप्त कर इसकी उपासना प्रारंभ कर दी थी ।
२. उस समय यह मांडू के बादशाह की तरफ़ से नियत था ।
३. ख्यातों में इस घटना का समय वि० सं० १५१६ ( ई० सन् १४६२ ) लिखा है ।
४. यह कन्नौज के राठोड़-घराने का था, और बहलोल लोदी ने इसे शम्साबाद (खोर) का सूबेदार बना दिया था ( तारीख़-फरिश्ता, पृष्ठ १७४ और १७६ ) ।
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