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मारवाड़ का इतिहास
रावजी के तीसरे भाई अज ने
खामंडल (शंखोद्धार - द्वारका के निकट ) के स्वामी चावड़ा भोजराज को मारकर वहाँ पर अधिकार कर लिया ।
अज ने स्वयं अपने हाथ से वहाँ के राजा का मस्तक काटा था, उसके वंश के लोग वाढेल राठोड़ के नाम से प्रसिद्ध हुए ।
वि० सं० १३४७ (ई० सन् १२१०) में जलालुद्दीन (ख़िलजी) ने शम्सुद्दीन को मार डाला और खुद फ़ीरोज़शाह द्वितीय के नाम से दिल्ली के तख़्त पर बैठा । इसी के अगले वर्ष उसकी फ़ौज ने पाली पर चढ़ाई की । जैसे ही यह सूचना आसधानजी को मिली, वैसे ही यह खेड़ से रवाना होकर पाली आ पहुँचे, और वहीं पर शाही सेना से युद्ध कर १४० राजपूत वीरों के साथ वीर गति को प्राप्त हुए । यह घटना वि० सं० १३४८ की वैशास्त्र सुदी १५ ( ई० सन् १२६१ की १५ एप्रिल) की है ।
राव आसथानजी के ८ पुत्र थे ।
इसलिये
से प्रकट होता है कि उक्त स्थान के पास जो हस्तिकुंडी ( हथंडी ) नामक नगरी थी, वहाँ पर तो विक्रम की दसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से ही राष्ट्रकूटों की एक शाखा
का राज्य था ।
इसी तरह सीहाजी के मारवाड़ में आने के पूर्व और भी कुछ शाखाएँ विद्यमान थीं । यह बात वि० सं०
( यह लेख जोधपुर के अजायबघर में रक्खा है ) ।
१. 'गुजरात राजस्थान' में यही नाम है । परंतु कर्नल टॉड ने उसका नाम भीकमसी लिखा है ( ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भा० २, पृ० ६४३ ) ।
२. इस शाखा के राठोड़ इस समय भी वहाँ पर पाए जाते हैं ।
३. किसी-किसी तवारीख़ में इस घटना का समय वि० सं० १३४५ ( ई० सन् १२८८ )
भी लिखा मिलता है ।
४. परंतु यदि यह श्रावणादि संवत् हो, तो अनुसार वि० सं० १३४६ की वैशाख को इस घटना का होना मानना होगा । वि० सं० १३५१ ( ई० सन् १२६३ ) का फ़ीरोज़शाह द्वितीय के समय का एक खंडित-शिलालेख उसकी बनवाई मंडोर में की मसजिद में अब तक विद्यमान है ।
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यहां पर ( मारवाड़ में ) राठोड़ों की १२१३ के लेख से प्रकट होती है
५. किसी-किसी ख्यात में इनके पुत्रों में मूपा और गुडाल इन दो के नाम और भी मिलते है। कर्नल टॉड ने आसथानजी के पुत्रों के नाम इस प्रकार लिखे है - १ धूहड़, २ जोपसी, ३ खीपसा, ४ भोपसू, ५ धाँधल, ६ जेठमल, ७ बांदर और ८ ऊहड (ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़ ग्रॉफ राजस्थान, भा० २, पृ० ६४३ ) ।
इसमें एक वर्ष का अंतर आवेगा । इसके सुदी १५ ( ई० सन् १२६२ की २ मई )
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