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मारवाड़ का इतिहास
पर अचानक हमला कर दिया । इसी हमले में यह शत्रुओं का मुकाबला करते हुए स्वर्ग को सिधारे । यह घटना वि० सं० १४०१ ( ई० स० १३४४ ) की है । खोखर, ३ वानर, ४ सीहमल, ५ रुद्रपाल,
इनके ७ पुत्र थे । १ तीडा, २ ६ खीमसी और ७ कानडदेव ।
८. राव तीडाजी
यह राव छाडाजी के ज्येष्ठ पुत्र थे और उनके बाद महेवे की गद्दी पर बैठे | इन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये सोनगरा चौहानों पर चढ़ाई कर उन्हें हराया और भीनमाल पर अधिकार कर लिया ।
कुछ दिन बाद इन्होंने देवड़ों, ( लोद्रवा के ) भाटियों, बालेचा चौहानों और सोलंकियों पर चढ़ाइयां कर उनसे भी दण्ड के रूप में रुपये वसूल किए ।
सिवाने के शासक चौहान सातल और सोम तीडाजी के भानजे थे । इसलिये जिस समय मुसलमानों ने चढ़ाई कर उनकी राजधानी को घेर लिया, उस समय रावजी भी अपने दलबल के साथ अपने भानजों की मदद को जा पहुँचे और वहीं पर मुसलमानों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ।
इनके ३ पुत्र थे । १ कान्हडदेव, २ त्रिभुवनसी और ३ सलखा
१. ख्यातों में लिखा है कि उक्त गाँव में जहाँ पर इनका दाह हुआ था, वहाँ पर एक चबूतरा भी बनाया गया था ।
२. ख्यातों के अनुसार यह घटना वि० सं० १४१४ ( ई० स० १३५७ ) में हुई थी ।
३. (६) राव कान्हडदेवजी - यह राव तीडाजी के बड़े पुत्र होने के कारण उनके बाद महेवे के राव हुए। सिवाने से लौटती हुई मुसलमानी सेना ने इनके राज्य पर भी हमला करदिया । यद्यपि मुख्य-मुख्य राठोड़ वीरों के पहले ही राव तीडाजी के साथ सिवाने के युद्ध में हताहत हो जाने के कारण उस समय इनके पास सैनिकों की संख्या बहुत ही कम थी, तथापि इन्होंने बड़ी वीरता से शत्रुदल का सामना किया। परन्तु अन्त में अपनी संख्याधिकता के कारण महेवे पर मुसलमानों ने अधिकार कर लिया ।
कुछ समय बाद जब कान्हडदेवजी के पास फिर धन-जन का संग्रह हो गया, तब इन्होंने मुसलमानों को निकाल कर खेड़ पर कब्ज़ा कर लिया और अपने अन्त समय तक यह वहाँ पर शासन करते रहे ।
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