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मारवाड़ का इतिहास
वि० सं० १४६४ ( ई० सन् १४०८ = हि० सन् ०१०) में शम्सखाँ ने अपने भाई (गुजरात के शासक मुज़फ़्फ़रशाह प्रथम ) की सहायता से नागोर पर अधिकार करलिया । इस पर चूंडाजी मंडोर चले आए ।
जिस समय राव चूंडाजी ने डीडवाना और साँभर पर चढ़ाई की, उस समय इनके कहने से इनके अन्य भाइयों ने भी इन्हें उस कार्य में यथासाध्य सहायता दी श्री । परंतु इनका भाई जैसिंह चुप बैठ रहा था । इसी से वि० सं० १४६८ ( ई० सन् १४११ ) में इन्होंने सेना भेजकर फलोधी का अधिकार उससे छीन लिया ।
शम्सख़ाँ के मैरने पर नागोर पर उसके पुत्र फ़ीरोजखाँ का अधिकार हो गया । परंतु वि० सं० १४७८ ( ई० सन् १४२१ ) के क़रीब इन्होंने उसको भगाकर नागोर पर दुबारा अधिकार कर लिया ।
रात्र चूंडाजी के और पूंगल के भाटियों के बीच बहुत दिनों से झगड़ा चला आता था । इसीसे उन्होंने मुलतान के सेनानायक सलीमँ की सहायता प्राप्तकर नागोर पर चढ़ाई की। जांगलू के सांखलों और जैसलमेर के भाटियों ने भी उनका साथ दिया । जब यह सम्मिलित दल नागोर के पास पहुँचा, तब भाटियों ने धोका देने की नियत से आगे बढ़ चूंडाजी से मेलजोल की बातें शुरू कीं । भाटियों के इस रुख को देख जिस समय चूंडाजी स्वयं उनसे मिलने को नगर से बाहर आए, उसी समय पीछे ठहरी हुई शत्रु सैन्य ने एकाएक आगे बढ़ इनको घेर लिया इस पर यद्यपि रावजी ने और उनके साथ के राठोड़ों ने बड़ी वीरता से शत्रु-दल का सामना किया, तथापि अंत में अपनी संख्याधिकता के कारण शत्रु विजयी हुए, और
१. ' तबकाते-अकबरी' पृ० ४४८ और 'मिराते - सिकंदरी' पृ० १८ ।
२. हि० सन् ८१६ ( वि० सं० १४७४ ई० सन् १४१६ ) में जिस समय गुजरात के शासक अहमदख़ाँ ने बुरहानपुर पर चढ़ाई की थी, उस समय शम्सखाँ ने उसे एक पत्र लिखा था (मिराते-सिकंदरी पृ० ३३ ) । इससे उस समय तक नागोर पर शम्सखों का अधिकार होना प्रकट होता है ।
३. यह शायद देहली के बादशाह की तरफ से मुलतान में नियत था । किसी-किसी ख्यात में इसे मुलतान के हाकिम का सेनापति लिखा है ।
४. उस समय जैसलमेर की गद्दी पर महारावल लखमणजी थे । और, ओडीट के मोहिलों ने भी इस चढ़ाई में भाग लिया था ।
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