________________
मारवाड़ का इतिहास
और उन्होंने नरबद का साथ छोड़ जोधाजी के सैनिकों को किला सौंप देने में ही अपनी कुशल समझी। उनके इस विचार की सूचना मिलने पर नरबद स्वयं गुजरात को लौट गया । परन्तु वह लौटकर बादशाह के पास न पहुँच सका । मार्ग में ही उसका देहान्त हो गया । काँधल के वहाँ पहुँचने पर विना लड़े-भिड़े ही मंडोर का किला उसे सौंप दिया गया। इस पर वह भी वहाँ का प्रबंध अधिक विश्वास-योग्य पुरुषों को सौंप सोजत लौट आया।
इसके बाद जोधाजी ने मेवाड़ पर चढ़ाई की । ख्यातों में लिखा है कि इन्होंने रात के समय चित्तौड़ पर आक्रमण कर वहाँ के किले के द्वार को जला दिया । मेवाड़ के गाँवों को लूट पीछोला तालाब ( मेवाड़ की आधुनिक राजधानी उदयपुर के पास) तक धावा मारी, और लौटते हुए यह मेवाड़ के सेठ पद्मचंद को पकड़ लाएँ।
इस घटना ने महाराना को राव जोधाजी पर चढ़ाई करने के लिये लाचार कर दिया । इसी से वह इस अपमान का बदला लेने के लिये दल-बल-सहित नारलाई (गोडवाड़-प्रांत ) में पहुँचे । राव जोधाजी इसके लिये पहले से ही तैयार थे । इससे जैसे ही इन्हें कुंभाजी की चढ़ाई का समाचार मिला, वैसे ही इन्होंने, उनके मुकाबले के लिये, पाली में अपनी सेना इकट्ठी की, और सब प्रबंध हो जाने पर यह वहाँ से आगे बढ़ नाडोल (गोडवाड़-प्रांत ) में जा पहुंचे। उस समय रावजी के साथ करीब बीस हजार रणबांकुरे राठोड़ योद्धा थे । परन्तु इतने घोड़ों का प्रबंध न हो सकने के कारण उनमें से बहुत-से बैल गाड़ियों पर बैठकर रण-क्षेत्र की तरफ़ गए थे। इन्हें देख मेवाड़वालों को निश्चय हो गया कि ये राठोड़ वीर साधारण मार-काट मचाकर लौट जाने के इरादे से न आकर मरने-मारने का निश्चय करके ही आए हैं । यह देख साँखला नापा ने कुंभाजी को समझाया कि इस समय राव जोधाजी
१. 'चीतोड तणा चूंडाहरै किंमाडह परजालिया' (प्राचीन छप्पय ) २. 'जोधे जंगम प्रापरा पीछोले पाया ।' (रामचंद्र ढाढी-कृत नीशांणी) ३. 'पद्मचंद मठ लायौ पकड़ दाह मेवाड़ा उरदयौ ।' (प्राचीन छप्पय ) इस सेठ ने खैरवा
पहुंचने पर बहुत-सा द्रव्य भेट कर अपना छुटकारा हासिल किया था। इसी धन से जोधपुर का किला बनवाना प्रारंभ किया गया, और सेठ को यादगार में किले के पास पद्मसर
नामक तालाब बनवाया गया। ४. 'जोधातणे सांमुहै जातां गाडां भैहाथिया गया ।' (प्राचीन गीत )
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com