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मारवाड़ का इतिहास जिन लोगों ने विपत्ति के समय सहायता दी थी, उन सबको यथायोग्य दान और मान से संतुष्ट किया गया । कहते हैं, इसी समय इन्होंने मंडोर के पास अपने नाम पर जोघेलाव-नामक तालाव बनवाया था ।
वि० सं० १५१६ की ज्येष्ठ-सुदी ११ शनिवार ( ई० सन् १४५६ की १२ मई ) को राव जोधाजी ने मंडोर से ६ मील दक्षिण में नया किला बनवाना प्रारंभ किया, और उसी के पास अपने नाम पर जोधपुर-नगर आबाद किया । १. ख्यातों में लिखा है कि पहले जोधाजी का विचार मसूरिया नामक पर्वत-भंग पर किला
बनाने का था । परंतु वहां आस-पास जल की कमी होने से यह विचार स्थगित करना पड़ा । उसी समय उस पर्वत-*ग पर रहनेवाले एक फ़कीर ने इन्हें पचेटिया-नामक पर्वतभंग पर किला बनवाने की सलाह दी । यह बात रावजी को भी पसंद आ गई । कहते हैं, इसके एवज़ मैं उस फ़कीर ने रावजी से दो प्रार्थनाएँ की थीं । एक यह कि रामदेवजी के दर्शनार्थ रुणेचा जानेवाले वे यात्री, जो इधर से निकलें, पहले उसके आश्रम पर अावें,
और दूसरी यह कि राज्य की तरफ से साल में दो बार उसके आश्रम में भेट भेजी जाय ।
रावजी ने उसकी ये दोनों प्रार्थनाएँ स्वीकार करलीं । प्रचलित प्रथा के अनुसार जोधपुर के किले की दीवार के नीचे दो जीवित पुरुष गाड़े गए । ये जाति के चमार थे । इसकी एवज़ में उनकी संतान को कुछ खास सुविधाएँ और भूमि दी गई । किसी किसी ख्यात में किले की दीवार के नीचे राजिया नामक चमार का गाड़ा जाना लिखा है।
प्रसिद्धि है कि जिस पर्वत पर जोधपुर का किला बनवाया गया है, उस पर के मरने के पास चिडियानाथ नामक एक योगी रहा करता था । परंतु जब उसका आश्रम किले के भीतर ले लिया गया, तब वह आस-पास जल का अभाव रहने का शाप देकर वहां से नौ कोस अग्निकोण में स्थित पालासनी गांव में चला गया। वहीं पर उसकी समाधि बनी है । राव जोधाजी को जब योगी के इस प्रकार अप्रसन्न होकर जाने का समाचार मिला, तब इन्होंने (आधुनिक सरदार मारकैट के पास ) उसके लिये एक मठ बनवाकर उसे वापस ले आने के लिये अपने आदमी भेजे । परंतु उसने कुछ दिन बाद आने का वादा कर उन्हें लौटा दिया । अंत में वह आकर कुछ दिन उस मठ में ठहरा, और उसी के पास उसने एक शिवालय बनवाया । उसी योगी के कहने से जोधाजी ने नित्य एक रोठ बनवाकर किसी साधु-संन्यासी को देने की प्रथा प्रचलित की थी । (वि० सं० १६७१ [ ई० सन् १६१४ ] में, राज्य की तरफ़ से, उस शिवालय का जीर्णोद्धार किया गया।)
जिस मरने के पास वह योगी रहा करता था, उसके निकट ही राव जोधाजी ने एक कुण्ड और एक छोटा-सा शिव का मंदिर बनवा दिया था । यद्यपि आजकल वह मरनेश्वर महादेव का स्थान बहुत कुछ सुन्दर बना दिया गया है, तथापि वहां के मरने का जल कम हो गया है।
ख्यातों में वि० सं० १५१५ की ज्येष्ठ-सुदी ८ को बलिदान देकर ज्येष्ठ-सुदी ११ को जोधपुर के किले का प्रारंभ करना और ज्येष्ठ सुदी १३ को उसके द्वार की प्रतिष्ठा करना लिखा मिलता है । परंतु यह श्रावणादि संवत् है । इसलिये उस समय चैत्रादि संवत् १५१६ था ।
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