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मारवाड़ का इतिहास
इसी वर्ष जिस समय जोधाजी साँखला नापाजी की सहायता के लिये जांगलू की तरफ़ गए, उस समय इन्होंने अपनी माता के बनवाए 'कोडमदे-सर' नामक तालाब की प्रतिष्ठा कर वहाँ पर एक कीर्ति-स्तंभ स्थापित किया, और वहाँ से लौटकर अपने कुल-पुरोहित को एक नया दानपत्र लिख दियाँ ।
१. कहते हैं, इस सहायता की आवश्यकता बल्लोचों के आक्रमण के कारण पड़ी थी। २. यह तालाब इनकी माता कोडमदेवी ने बनवाया था। वह वीपुर और पूँगल के स्वामी
भाटी केल्हण की कन्या थी, और रणमल्लजी के मारे जाने की सूचना मिलने पर इसी तालाब के तट पर सती हुई थी। वहां पर स्थापित कीर्ति-स्तंभ में लिखा है:
संवत् १५१६ [ वर्षे ] सा(शा)के १३८ [१] प्रवर्तमानेः (ने) [महा] मांगल्य भाद्रवा सु [ दि] [६] सोमदिने हस्त नि (न) [क्षत्रे ] सुक [ल ] (शुक्ल) जो (यो) गे [ कौ] लव [करणे ]..... राठ [ड] [म ] हाधिराय श्री रा [य श्री] जोधा राय श्रीरिणमल सु [त ] त [डा] उ [ग] पत्रिस्टा( प्रतिष्ठा )कार (रि) ता। माता श्रीकोडमदे [नि ] मिति (तं) की
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स्त (स्तु) (जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भा० १३ [ई० सन् १९१७ ], पृष्ठ २१७-२१८)
ख्यातों में जोधाजी द्वारा राव रणमलजी के बारहवें दिन के कृत्य का भी इसी तालाब पर किया जाना लिखा है। इससे ज्ञात होता है कि यह तालाब उस समय के पूर्व ही बन चुका था।
कुछ ख्यातों में इस तालाब का भाटी सादा की स्त्री कोडमदेवी की यादगार में उसके श्वशुर द्वारा बनवाया जाना लिखा है । परंतु यदि वास्तव में ऐसा होता, तो राव जोधाजी को उसकी प्रतिष्ठा करवाकर वहाँ पर कीर्ति-स्तंभ स्थापित करवाने की आवश्यकता ही न होती । ३. यद्यपि यह ताम्रपत्र, जिस पर उपर्युक्त दानपत्र लिखवाया गया था, इस समय नष्ट हो चुका
है, तथापि राजा उदयसिंहजी की सनद से ज्ञात होता है कि वि० सं० १६३५
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