________________
राव जोधाजी उन दिनों महाराना कुंभाजी और मालवे के सुलतान के बीच झगड़ा छिड़ा हुआ था । इसी से मारवाड़ राज्य के हाथ आकर निकल जाने पर भी वह उस पर फिर से अधिकार करने के लिये नई सेना न भेज सके ।
इसप्रकार गोडवाड़ तक अपना अधिकार हो जाने से राव जोधाजी ने आगे बढ़ मेवाड़ पर हमला करने का इरादा किया । परन्तु इसी बीच वरजाँग के और जसोल के रावल बीदा के बीच घोड़ों के लिये झगड़ा हो गया । इसमें बीदा और उसका पुत्र मारा गया ।
इसके बाद शीघ्र ही सोजत में चुने हुए योद्धाओं की दो सेनाएँ तैयार की गईं । उनमें से एक का सेनापतित्व काँधल को और दूसरी का वरजाँग को सौंपा गया । राव जोधाजी का इरादा सिरियारी के मार्ग से मेवाड़ पर आक्रमण करने का था, परन्तु इसी समय, गुजरात के बादशाह से धन की सहायता मिल जाने के कारण, नरबद मंडोर पहुँचा, और वहाँ के दुर्ग-रक्षकों को लालच देकर किले में घुस बैठा । इसकी सूचना मिलते ही राव जोधाजी ने काँधल के दल को मंडोर की तरफ़ जाने की आज्ञा दी, और साथ ही एक दूत भेजकर मंडोर के दुर्ग-रक्षकों को कहलाया कि हमने मंडोर पर फिर से अधिकार करने को सेना रवाना करदी है । परन्तु उसके वहाँ पहुँचने के पूर्व ही तुम्हें सोच लेना चाहिए कि नरबद के समान अंधे स्वामी का आश्रय लेकर तुम लोग अधिक समय तक हमारा विरोध करने में सफल हो सकोगे या नहीं ? यह बात उन लोभ में पड़े योद्धाओं की समझ में भी आ गई,
१. परन्तु किसी-किसी ख्यात में कुंभाजी का दुबारा मंडोर - विजय करने के लिये चढ़ाई करना और आगे वर्णन की गई राठोड़ों के गाड़ियों में बैठकर लड़ने को जानेवाली घटना का इस अवसर पर होना लिखा है ।
२. ख्यातों में लिखा है कि एक बार वरजाँग के कुछ घोड़े, जो जंगल में चरा करते थे, रोहट में तलवाड़े की तरफ चले गए, और उन्हें जसोल के रावल बीदा के पुत्र ने पकड़ लिया । इसकी सूचना मिलने पर वरजाँग के आदमी उन्हें ले आने को वहाँ गए । परन्तु रावल के पुत्र ने उन्हें देने से साफ इनकार कर दिया । इस पर वरजाँग को तलवाड़े पर चढ़ाई करनी पड़ी उस समय रावल बीदा कहीं बाहर गया हुआ था, इससे वरजाँग का मुक़ाबला उसके पुत्र से हुआ। कुछ देर के युद्ध में कुँवर मारा गया, और विजयी वरजाँग अपने घोड़े लेकर वापस चला आया । परन्तु बाहर से लौटने पर जब बीदा को इस घटना की खबर मिली, तब उसने कुँवर का बदला लेने के लिये वरजाँग पर चढ़ाई की। रोहट के पास युद्ध होने पर बीदा भी मारा गया ।
८६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com