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राव जोधाजी में कोसाना पर हमला किया, और तीसरा भाग स्वयं जोधाजी के सेनापतित्व में चौकड़ी पर चला। ___कोसाना और चौकड़ी पर के हमले अर्द्धरात्रि में अचानक किए गये थे। इससे वहाँ पर की मेवाड़ की सेनाओं में शीघ्र ही गड़बड़ मच गई, और वे युद्ध में मुखियाओं के मारे जाते ही अपना साज-सामान छोड़ भाग खड़ी हुईं। इसके बाद शीघ्र ही दोनों भाई ( जोधाजी और चाँपा) अपने विजित प्रदेशों का प्रबंध कर वरजाँग के पास जा पहुँचे, और प्रातःकाल होने के पूर्व ही तीनों ने मिलकर मंडोर पर भी अधिकार करलिया । यह घटना वि० सं० १५१० की है।
राव रणमल्लजी की मृत्यु से लेकर मंडोर विजय करने तक राठोड़ों की तरफ़ से अपने देश की स्वाधीनता के लिये जितने कार्य किए गए थे, उन सबमें जोधाजी ने ही मुख्य भाग लिया था, और इनके १५ वर्ष के लगातार परिश्रम से ही यह विजय प्राप्त हुई थी । इसलिये मंडोर के किले पर अधिकार होते ही इनके बड़े भ्राता अखैराज ने तत्काल अपने अंगूठे को तलवार से चीरकर उसके रुधिर से जोधाजी के ललाट
१. ख्यातों से ज्ञात होता है कि जिस समय चौकड़ी पर आक्रमण हुआ था, उस समय
राघवदेव भी वहीं था । परन्तु वह संवाड़वालों की पराजय हो जाने से भागकर
सोजत चला गया । २. मंडार के युद्ध में राना कुंभाजी के चचा रावत चूंडा के दो पुत्र कुंतल और सूआ, चचा
का पुत्र प्राका और पाहाडा हिंगोला आदि मारे गए । हिंगोला पर बनी छतरी बालसमंद तालाब पर अब तक विद्यमान है।
उदयपुर के इतिहासलेखकों ने लिखा है कि महाराना कुंभाजी ने, अपनी दादी हंसाबाई के समझाने से, अपने चचा रावत चूंडा से कुछ न कह सकने पर भी, जोधाजी को मंडोर पर अधिकार कर लेने का इशारा करवा दिया था। परन्तु उनका यह लिखना केवल महाराना की पराजय को छिपाने का प्रयत्न करना है; क्योंकि वास्तव में यह विजय जोधाजी ने युद्ध के बाद ही प्राप्त की थी।
किसी-किसी ख्यात में यह भी लिखा है कि राव वीरमजी का एक विवाह मांगलिया शाखा के सीसोदियों के यहाँ हुआ था। इसी से मेवाड़ की देख-भाल के लिये वहाँ रहने के समय रणमल्लजी के और मांगलिया कल्याणसिंह के बीच घनिष्ठ मित्रता हो गई थी। इस घटना के समय यही कल्यागासिंह मंडोर का कोतवाल था । इसने पुरानी मैत्री का विचार कर मंडोर के किले का द्वार खुलवा दिया । इसी से जोधाजी को उस पर अधिकार करने में अधिक विलंब न लगा।
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