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राव जोधाजी
यह राव रणमल्लजी के द्वितीय पुत्र थे । इनका जन्म वि० सं० १४७२ की वैशाख बदी ४ ( ई० सन् १४१५ की २६ मार्च) को हुआ श्री 1
राव जोधाजी
वि० सं० १४८४ ( ई० सन् १४२७ ) में जिस समय रणमल्लजी ने राव सत्ताजी से मंडोर का अधिकार छीना, उस समय जोधाजी की अवस्था केवल १२ वर्ष की थी । परन्तु फिर भी यह पिता के साथ रणस्थल में गए । इसके बाद वि० सं० १४० ( ई० सन् १४३३ ) में जब राव रणमल्लाजी महाराना मोकलजी की हत्या का बदला लेने को मेवाड़ गए, तब भी यह उनके साथ थे ।
वि० सं० १४९५ की कार्त्तिक बदी ३० ( ई० सन् १४३८ की २ नवंबर ) की रात में जैसे ही इन्हें राव रणमल्लजी के धोके से मारे जाने का समाचार मिला, वैसे ही यह अपने भाइयों और ७०० राठोड़ - योद्धाओं को साथ लेकर चित्तौड़ से मारवाड़ की तरफ़ चल दिएँ । परन्तु इनके चीतरोड़ी पहुँचते-पहुँचते पीछा करनेवाली मेवाड़ की सेना भी वहाँ आ पहुँची । उस विशाल सेना का संचालक, महाराना कुंभाजी का चचा, स्वयं रावत चूंडा था । इस प्रकार शत्रु के एकाएक आ पहुँचने से दिन-भर तो दोनों तरफ़ से मारकाट होती रही, परन्तु रात्रि के अंधकार में युद्ध बंद होते ही राठोड़ों ने मारवाड़ का मार्ग लिया । यह देख मेवाड़ की सेना भी इनके पीछे चली । यद्यपि मार्ग में दोनों के बीच कई लड़ाइयाँ हुईं, तथापि कपासण पहुँचने पर एक बार फिर दोनों तरफ़ से जमकर तलवार चलाई गई । इसी युद्ध में हत हो जाने से वरजाँग मेवाड़ वालों के हाथ पड़ गया । इस प्रकार शत्रु से लड़ते-भिड़ते
१. कर्नल टॉड ने इनका जन्म वि० सं० १४८४ ( ई० सन् १४२७ ) में होना लिखा है (ऐनाल्स ऐंड एंटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भा० २, पृष्ठ ६४७) । परन्तु यह ठीक नहीं है ।
२. ख्यातों में लिखा है कि उस समय जोधाजी का चचा ( राव चंडाजी का पुत्र ) भीम नशे में होने से पीछे छूट गया। इसका विवाह महाराना के कुटुम्ब में हुआ था । इससे वहाँवालों ने इसे क़ैद कर लिया । परन्तु कुछ दिन बाद जोधपुर राजघराने के पुरोहित दमा ने पहुँच इसे छल से छुड़वा लिया |
३. इसी युद्ध में जोधाजी का भाई पाता मारा गया ।
४. यह जोधाजी का चचेरा भाई और भीम का पुत्र था ।
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