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मारवाड़ का इतिहास
इस प्रकार मंडोर का राज्य प्राप्त कर लेने पर भी यह कुछ दिन के लिये मेवाड़ जाकर राजकाज की देखभाल में महाराणा मोकलजी को सहायता दिया करते थे। जिस समय मोकलजी ने नागोर के शासक फीरोजखाँ पर चढ़ाई की, उस समय भी यह उनके साथ थे' । इसी प्रकार इन्होंने मोकलजी को सवालख, जालोर, सांभर, जहाजपुर आदि की चढ़ाइयों में और मुंहम्मद ( गुजरात के शासक अहमदशाह के पुत्र ) के साथ के युद्ध में भी सहायता दी थी।
वि० सं० १४८७ (ई० सन् १४३०) में राव रणमल्लजी ने एक बार फिर जैसलमेर पर चढ़ाई की। इसपर वहां के महारावल लक्ष्मणजी ने एक चारण के द्वारा संधि का प्रस्ताव भेज, अपनी कन्या इन्हें व्याह दी ।
१. ख्यातों में इसी समय राव रणमल्लजी का नागोर पर अधिकार कर लेना भी लिखा है,
परन्तु यह ठीक प्रतीत नहीं होता। २. इसका पिता अहमदशाह वि० सं० १४६६ (ई० सन् १४४२ ) तक जीवित था,
परन्तु सम्भवतः उसने इसे नागार के शासक फीरोज़खाँ की सहायता में भेजा होगा। ३. ख्यातों में इस चारण का नाम भोजा लिखा है । उसने अाकर रणमल्लजी को यह छप्पय सुनाया था
"तै गंजे पीरोज ढाल गौ महमद ढाले, तै गंजे चहुवाँण धरा चावडां उद्राले । तै गंजे भाटियाँ कोट जाजपुर संघारे, तै गंजे पतिसाह नहीं गंजिया अवारे । मो सीख एक सांभल श्रवण तूं प्रारंभै आप बल,
रिडमल अगंजी गंजिया केवी गंजि अगंजि बल ।" अर्थात्-तूने ( नागोर के शासक ) फ़ीरोज़खाँ को हराया, तेरे सामने ( गुजरात के शासक अहमद का पुत्र ) मुहम्मद भाग खड़ा हुआ, तूने ( नागोर के सोनगरा ) चौहानों को परास्त किया, तेरे प्रताप से चावड़ों के राज्य की पृथ्वी कांपती है, तूने भाटियों को मारा. जहाजपुर के किले को नष्ट किया, और ( सलीम को मारकर ) सुलतान के गर्व को तोड़ा । परन्तु तूने कभी साधारण लोगों को कष्ट नहीं दिया । हे रिडमल ( रणमल्ल ) ! तू मेरी एक बात सुन । त् सब काम स्वयं अपने ही भरोसे पर करता है। तूने सिर उठानेवालों को ही दबाया है, और आगे भी तुझे ऐसा ही करना चाहिए । ( अर्थात्-जब भाटी तेरा सामना करने को तैयार नहीं हैं, तब उन पर कोष करना व्यर्थ है।)
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