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राव रणमल्लजी रणमल्लजी के बढ़ते हुए प्रतापं को देख सोनगरों ( चौहानों ) के चित्त में द्वेष ने घर कर लिया था । इसी से उन्होंने इनको अपने वंश की कन्या के साथ विवाह करने के लिये बुलवाकर मार डालने का इरादा किया । परन्तु बातके प्रकट हो जाने से यह बचकर निकल गए, और कुछ ही दिनों में इन्होंने सोनगरों को मारकर नाडोल पर अधिकार कर लिया। ख्यातों के अनुसार यह घटना वि० सं० १४८२ (ई० सन् १४२५ ) में हुई थी।
पहले लिखा जा चुका है कि राव चूंडाजी के मारने में जैसलमेर के भाटियों का भी हाथ था। इसी का बदला लेने के लिये रणमल्लजी ने उनके प्रदेशों को लूटना शुरू किया । यह देख वहां के रावल लक्ष्मणजी घबरा गए, और उन्होंने दंड के रुपये देना स्वीकार कर इनसे सुलह कर ली।
वि० सं० १४८३ ( ई० सन् १४२६ ) में इनकी सेना ने सीधल राठोड़ों से जैतारण छीन लिया, और बाद में हुलों को भगाकर सोजत पर भी अधिकार कर लिया। सोजत पर अधिकार करते समय रणमल्लजी का ज्येष्ठ पुत्र अखेराज भी सेना के साथ गया था, इसलिये वहां की देखभाल का भार उसी को सौंपा गया।
इसी समय राव सत्ताजी के और उनके भाई रणधीर के बीच झगड़ा हो गया। इसपर रणधीर रणमल्लजी के पास मेवाड़ चला आया, और उसने समझा-बुझाकर,
और कान्हाजी के बाद राज्य पर इन्हीं का हक़ बतलाकर, इन्हें मंडोर पर चढ़ाई करने के लिये तैयार कर लिया। इसके बाद रणमल्लजी ने अपनी और मेवाड़ की सम्मिलित सेना लेकर मंडोर पर चढ़ाई की । नजदीक पहुँचने पर इनका और राव सत्ताजी के पुत्र नरबद का मुकाबला हुआ । यद्यपि नरबद ने बड़ी वीरता से इनका सामना किया, तथापि उसके घायल हो जाने से मंडोर पर रणमल्लजी का अधिकार हो गया । यह घटना वि० सं० १४८५ ( ई० सन् १४२८) की है ।
१. किसी-किसी ख्यात में इस घटना का वि० सं० १४८० (ई सन् १४२३) में
होना लिखा है। २. रणधीर ने इन्हें समझाया कि आपने पिता की आज्ञा से कान्हाजी को राज्याधिकार दिया
था। परन्तु उनके अपुत्र मरने पर अब उसपर आपका ही हक़ है । छोटे होने के कारण सत्ताजी का उसपर अधिकार कर बैठना बिलकुल अनुचित है।
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