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गव चूंडाजी इस कार्य में इन्हें इनके चचा रावल गल्लिनाथजी ने भी सहायता दी थी। इसके बाद इन्होंने नागोर के उत्तरी प्रदेश को विजयकर वहाँ '।र अपने नाम पर लूंडासर गाँव बसाया, और कुछ ही समय में शाही हाकिमों को मारकर खाटू, डीडवाना, साँभर और अजमेरे पर भी कब्ज़ा करलिया । इसी तरह कुछ दिनों में नाडोल भी इनके अधिकार में आ गया।
'तबकाते-अकबरी' (पृ० ४४८) और 'मिरातेसिकंदरी' ( पृ० १७-१८ ) में लिखा है"जब तातारखाँ ( मोहम्मदशाह ) मर गया, और गुजरात का शासन दुबारा ज़फ़रखाँ (आज़म हुमायूं मुज़फ्फरशाह प्रथम ) के हाथ में आया, तब उसने मलिक जलाल खोकर की जगह अपने छोटे भाई शम्सखा दंदानी को नागोर का हाकिम बनाकर भेजा।" उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र से चुंडाजी ने दुबाग नागोर छीना था। ख्यात लेखकों ने इन दोनों घटनाओं को एक समझकर ही शायद यह गड़बड़ की है। १. यह स्थान ( बीकानेर के ईशानकोण में ) गजनेर के पास है । यहीं पर इनका बनवाया
चूडासर तालाव भी है । इसके उत्तर की तरफ के टीले पर दो स्तंभ खड़े हैं । कहते हैं, चूंडाजी ने अपने घोड़े की लंबी छलांग की यादगार में ये पाषाण-स्तंभ खड़े करवाए थे। इससे यह भी प्रकट होता है कि इन्होंने जांगलू के सांखलों, मोहिलों और भाटियों की कुछ भूमि पर भी अवश्य ही अधिकार कर लिया था। साथ ही इन्होंने जोहियों से भी
अपने पिता का बदला अवश्य लिया होगा। २. इन्होंने अजमेर वि० सं० १४६२ ( ई० सन् १४०५ ) में लिया था। वहां के छतारी गांव
में इस समय भी चूंडावत राठोड़ पुराने जागीरदार ( भोमियों) के रूप में विद्यमान हैं। ३. (ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान, भा॰ २, पृ० ६४४ ) । 'तवारीख़ पालनपुर'
में लिखा है कि राव चूडा ने जालोर के मालिक बीसलदेव चौहान को अपनी कन्या के साथ विवाह करने के लिये मंडोर बुलवाया, और जब वह जालोर का किला बिहारी पठान मलिक खुर्रम को सौंपकर वहां गया, तब पहले से किए निश्चय के अनुसार चूंडा के पांचवें पुत्र पुंजा ने उसे मार डाला । इसके बाद उन्होंने जालोर पर अधिकार करने का इरादा किया । परंतु मलिक खुर्रम ने बीसलदेव की रानी पोपांबाई को गद्दी पर बिठाकर उनका इरादा पूरा न होने दिया । फिर भी कुछ दिन बाद, लोगों के कहने से, पोपांबाई ने बिहारी पठानों को धोका देकर मरवा डालने का इरादा किया । जैसे ही इस बात का पता मलिक खुर्रम को लगा, वैसे ही उसने पोपां के महल को घेर लिया । परंतु अंत में पोपां के पक्ष वाले हार गए और पोपां किला खाली कर अपने दो पुत्रों के साथ सिरोही के पहाड़ों में चली गई । वहां से जब वह ईडर पहुँची, तब वहां के स्वामी राठोड़ राव रणमल्ल ने उसके पुत्रों को जोरामीरपुर गांव जागीर में दे दिया । पोपांबाई के चले जाने पर जालोर बिहारी पठानों के अधिकार में चला गया ( खंड १, पृ० ४-६ )। संभव है, जालोर पर की चढ़ाई के समय बिहारियों के कारण वहां पर तो इनका अधिकार न हो सका हो, परंतु नाडोल इनके हाथ लग गया हो ।
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