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राव छाडाजी इनके इस प्रकार बढ़ते हुए प्रताप को देख जब भाटियों और मुसलमानों की सम्मिलित सेना ने इन पर चढ़ाई की, तब उसी का मुकाबला करते हुए यह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। इनके ३ पुत्र थेः-१ छाड़ा, २ भाकरसी और ३ डूंगरसी ।
७. राव छाडाजी
यह राव जालणसीजी के बड़े पुत्र थे और उनके बाद उनके उत्तराधिकारी हुए। कुछ दिन बाद ही इन्होंने उमरकोट के सोढ़ों पर चढ़ाई कर उन से दण्ड में घोड़े लिएँ और जैसलमेर के भाटियों को कहला भेजा कि यदि वे लोग किले के बाहर नगर बसावेंगे तो उन्हें कर ( खिराज) देना होगा । परन्तु वहां के भाटी नरेश ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया । यह देख छाडाजी ने जैसलमेर पर चढ़ाई की । यद्यपि एकवार तो भाटियों ने भी इनका बड़ी वीरता से सामना किया, तथापि अन्त में हार कर उन्हें अपने वंश की एक कन्या रावजी को व्याहनी पड़ी । इस प्रकार भाटियों से सुलह हो जाने के बाद रावजी ने पाली, सोजत, भीनमाल और जालोर पर चढ़ाई कर उन प्रदेशों को लूटा । परन्तु जिस समय यह इस युद्ध यात्रा से लौटते हुए जालोर प्रान्त के रामा नामक गांव में पहुँचे, उस समय सोनगरी और देवड़ा चौहानों ने मिलकर इन
१. यह घटना वि० सं० १३८५ (ई० स० १३२८) की है। २. ख्यातों में लिखा है कि मुलतान के यवन सेनापति की चढ़ाई के कारण छाडाजी को कुछ दिन के लिये महेवा छोड़ना पड़ा था । परन्तु शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो जाने से इन्होंने
उस पर फिर अधिकार कर लिया। ३. अपने पिता राव जालणसीजी की अन्तिम अाज्ञा के अनुसार ही इन्होंने सोढ़ा दुर्जनसाल
पर चढ़ाई कर उसे अपने पहले किए वादे से चौगुने घोड़े देने को बाध्य किया था। ४. सम्भवतः उस समय सोनगरों का मुखिया वनवीरदेव या उसका पुत्र रणवीरदेव होगा
(भारत के प्राचीन राजवंश, भा० १, पृ० ३१३ ) । ख्यातों में राव छाडाजी का सोनगरों के मुखिया सामंतसिंह के हाथ से मारा जाना लिखा है । परन्तु जालोर के सोनगरा नरेश सामंतसिंह के लेख वि० सं० १३३६ से १३५६ ( ई० स० १२८२ से १३०२) तक के मिले हैं। इसलिये वह तो इनका समकालीन हो ही नहीं सकता। परन्तु यदि ख्यातों में का यह नाम ठीक हो तो मानना होगा कि यह कोई दूसरा ही
सामन्त सिंह था। ५. ये सिरोही की तरफ के थे ।
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