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मारवाड़ का इतिहास
११. राव चूंडाजी यह राव वीरमदेवजी के द्वितीय पुत्र थे। इनका जन्म वि० सं० १४३: ( ई० सन् १३७७ ) में हुआ था । इसलिये पिता की मृत्यु के समय इनकी अवस्था केवल ६ वर्ष की थी । इसके बाद ७ वर्ष तक तो यह अपनी माता के इच्छानुसार गुप्त रूप से कालाऊं में आल्हा चारण की देखभाल में रहे', और इसके बाद आल्हों ने इन्हें इनके चचा रावल मल्लिनाथजी के पास पहुंचा दिया । वहाँ पर कुछ ही दिनों में इन्होंने अपनी कुशलता से रावलजी को इतना प्रसन्न कर लिया कि उन्होंने सालोडी गाँव इन्हें जागीर में देदिया, और साथ ही इनकी अवस्था छोटी होने से
ख्यातों में लिखा है कि राव चूंडाजी की दी हुई जागीर की प्राय, उसकी जैसलमेर वाली पहली जागीर की आय से भी अधिक थी और उसका प्रधान गांव मुंडेल था । जैसलमेर की ख्यातों में मेहराज को सुरजड़े का स्वामी और जैसलमेर-नरेश का सामन्त लिखा है । उनमें यह भी लिखा है कि उसका पुत्र जैसा जैसलमेर रावल के भतीजे लूणकरण की तरफ़ से युद्ध कर भाटी राणगदेव के हाथ से मारा गया था, उसी वैर का प्रतिशोध करने को वह (मेहराज ) राव चूंडाजी के पास जा कर रहा था।
१. पहले लिख आए हैं कि इनके पिता ने इनके बड़े भाई देवराजजी को सेतरावा नामक ___ गाँव जागीर में दिया था। २. यह मारवाड़ के शेरगढ़ परगने का गाँव है । ३. उस समय इनके छोटे भाई ननिहाल में थे । ख्यातों से ज्ञात होता है कि चूंडाजी बचपन
से ही होनहार थे, और इनकी रुचि भी अधिकतर राजसी खेलों में ही रहती थी। ४. ख्यातों से प्रकट होता है कि जिस समय चूंडाजी मंडोर के स्वामी हुए, उस समय इसी
आल्हा ने वहाँ पहुँच अपनी की हुई सेवा की याद दिलाने के लिये यह सोरठा पढ़कर सुनाया था:
चूंडा, नावै चीत, काचर कालाऊ तणा।
भूप भयौ भैभीत, मंडोवर रै मालियै । अर्थात्-हे चूंडाजी ! इस समय तो आपको कालाऊ के कचरों की याद भी नहीं आती है: क्योंकि इस समय आप मंडोर के इस ऊँचे महल में राजा होकर पत्थर की दीवार से बने बैठे हैं. (किसी की तरफ़ देखते तक नहीं)। यह सुन चूंडाजी ने उसे अपने पास बुलवा लिया, और दान-मान आदि से संतुष्ट कर घर जाने की आज्ञा दी । ५. ख्यातों में लिखा है कि चूंडाजी की चतुराई से प्रसन्न होकर जिस समय मल्लिनाथजी ने
इन्हें सालोडी गाँव जागीर में दिया था, उस समय इनसे कहा था कि वहाँ से पूर्व की तरफ़ का जितना भी प्रदेश हस्तगत करोगे वह सब तुम्हारे ही अधिकार में रहेगा ।
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