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राव वीरमजी
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एक बार अनावृष्टि के कारण महेवे की बहुतसी प्रजा को अपनी गायों आदि को लेकर मालवे की तरफ जाना पड़ा । इन्हीं में गोगादेव का कृपापात्र वानर राठोड़ तेजा भी था । अगले वर्ष वर्षा हो जाने पर जिस समय वह वापिस लौट रहा था, उस समय उसके और वांसो लिया गांव के स्वामी मोयल माणकराव के बीच झगड़ा हो गया । नजा ने गोगादेव के पास पहुँच उसकी शिकायत की । यह सुन गोगादव ने स्वयं ही माणकराव पर चढ़ाई कर दी । युद्ध होने पर माणकराव को हार कर भागना पड़ा।
कुछ दिन बाद ही गोगादव ने, अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये, जोहियों पर चढ़ाई की । पहली वार तो इसे बिना लड़े ही लौटना पड़ा । परन्तु दूसरी वार के आक्रमण के रात्रि में अचानक किए जाने और उस समय जोहियों के दूसरे मुखिया धीरदेव के पूंगल के भाटी रा]गदेव की कन्या से विवाह करने को गए होने से जोहियादला मारा गया। वहां म लौट कर जिस समय यह ( गोगादेव ) लच्छूसर गांव के पास ठहरा हुआ था, उसी समय, दला के पुत्र के द्वारा उपर्युक्त घटना का सूचना पाकर, धीरंदव और उसका श्वशुर राणेंगदेव दोनों अपने दलबल सहित वहां आ पहुँचे, और मौका देख उन्होंने पहले तो जंगल में चरने को छोड़े हुए गोगादेव के घोड़ों को दूर भगा दिया और फिर वे एकाएक आगे बढ़ गोगादेव पर टूट पड़े । इस विषय का यह दोहा प्रसिद्ध है:
भूका तिसिया थाकड़ा, राखी जे नैडाह ।
लिया हाथ न आवसी, गोगादे घोडाह ॥ यद्यपि इसने भी एक बार तो अपनी ( २लतली नामक ) तलवार सम्हाल कर जोहियों और भाटियों के सम्मिलित दल का बड़ी वीरता से सामना किया, तथापि कुछ देर बाद यह जांघों के कट जाने मे पृथ्वी पर गिर पड़ा । इसी समय राणगदेव उधर आ निकला । उसे देख गोगादेव से न रहा गया
और इसने उस अवस्था में होने पर भी उसे युद्ध के लिये ललकारा । परन्तु वह गोगादेव के पराक्रम मे भली भाति परिचित था। इसलिये दूर से ही दुर्वचन कहकर चला गया । इसके थोड़ी देर बाद धीरदेव भी किसी कार्यवश वहाँ आ पहुंचा और गोगादेव की ललकार को सुन वार करने के लिये इसकी तरफ झपटा ! परन्तु अभी वह आगे बढ़ा ही था कि गोगादेव ने उछल कर अपनी तलवार का एक हाथ उस पर जमा दिया । इससे धीरदेव के दो टुकड़े हो गए । इस प्रकार शत्रु से बदला लेकर गोगादेव भी रक्त निकल जाने मे वहीं शान्त हो गया । इसने मरते समय कहा था कि जाहियों से तो मैंने अपना बदला अापही ले लिया है, परन्तु भाटियों से बदला लेना बाकी है ।
आशा है इस कार्य को भी मेरे वंश का कोई न कोई सुपुत्र अवश्य ही पूरा करेगा। यह घटना वि० सं० १४५६ की जेष्ठ सुदि ५ (ई० ५० १४०२ की ७ मई ) की है । (परन्तु ख्यातों में का यह संवत् श्रावणादि हो तो वि० सं० १४६० की ज्येष्ठ सुदि ५ को ई० स० १४०३ की २६ मई होगी। )
__इस युद्ध में गोगादव की तरफ़ का सांखला मेहराज का पुत्र प्रालणसी भी मारा गया था। इसलिये कुछ दिन बाद ही राणांगदेव ने मेहराज पर चढ़ाई करदी । यह देख वह भाग कर राव चूंडाजी के पास चला गया । चूंडाजी ने उसका बड़ा आदर किया और निर्वाह के लिये जागीर देकर उसे अपने पास रख लिया ।
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