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मारवाड़ का इतिहास
१०. राव वीरमजी
यह सलखाजी के पुत्र और रावल मल्लिनाथजी के छोटे भाई थे । यद्यपि मल्लिनाथजी
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में चल दिए। इसी समय इनके बड़े चचा कान्हड़देवजी का स्वर्गवास हो गया और छोटे चचा त्रिभुवनसीजी महेवे की गद्दी पर बैठे। जैसे ही इस घटना की सूचना मल्लिनाथजी को मिली, वैसे ही यह यवन -सेना के साथ वहां आ पहुँचे और त्रिभुवनसीजी को युद्ध में ग्राहत कर खेड़ के स्वामी बन बैठे ।
रावल मल्लिनाथजी एक वीर पुरुष थे । इससे जब इन्होंन मंडोर, मेवाड़, आबू और सिंध के बीच लूट मारकर मुसलमानों को तंग करना शुरू किया, तब उनकी एक बड़ी सेना ने इनपर चढ़ाई की । उस सेना में तेरह दल थे । परन्तु मल्लिनाथजी ने इस बहादुरी से उसका सामना किया कि यवनसेना को मैदान छोड़ कर भाग जाना पड़ा । इस विषय का यह पद मारवाड़ में अबतक प्रचलित है :• तरह तुंगा भांगिया माले सलखाणी
अर्थात्-सलखाजी के पुत्र मल्लिनाथजी ने सेना के तेरह दलों को हरा दिया । ख्यातों के अनुसार यह घटना वि० सं० १४३५ ( ई० स० १३७८) में हुई थी । इस पराजय का बदला लेने के लिये मालवे के सूबेदार ने स्वयं इन पर चढ़ाई की। परन्तु मल्लिनाथजी की वीरता और युद्ध कौशल के सामने वह भी कृतकार्य न हो सका ।
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मल्लिनाथजी ने सालोडी गांव अपने भतीजे ( वीरमजी के पुत्र) चूंडाजी को जागीर में दिया था और उनके नागोर पर चढ़ाई करने के समय उनकी सहायता भी की थी ।
रावलजी ने सिवाना मुसलमानों से छीन कर अपने छोटे भाई जैतमाल को, खेड़ वीरमजी को ( किसी किसी ख्यात में भिरड़कोट लिखा है) और ओसियां शोभितजी को जागीर में दी थी । वास्तव में ओसियां पर उस समय पँवारों का अधिकार था और मल्लिनाथजी की अनुमति से शोभितजी ने उन्हें हरा कर वहां पर अधिकार कर लिया था ।
रावल मल्लिनाथजी का स्वर्गवास वि० सं० १४५६ ( ई० स० १३६६ ) में हुआ । मारवाड़ के लोग इनको सिद्ध पुरुष मानते हैं । लूनी नदी के तट पर बसे तिलवाड़ा नामक गांव में इनका एक मन्दिर बना है और वहां पर चैत्र मास में एक मेला लगा करता है । इसमें घोड़े, बैल, ऊँट और गायों की लेवा- बेची होती है । इस अवसर पर बाहर के भी बहुत से खरीददार आया करते हैं ।
इनके ५ पुत्र थे । १ जगमाल, २ कंपा, ३ जगपाल, ४ मेहा और ५ अडवाल ।
(१२) रावल जगमालजी - यह मल्लिनाथजी के बड़े लड़के थे और उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी हुए । इन्होंने मल्लिनाथजी की जीवित अवस्था में ही गुजरात की मुसलमानी सेना को हरा कर उसके अधिनायक की कन्या गींदोली को छीन लिया था ।
किसी किसी ख्यात में लिखा है कि एक बार गुजरात के यवन-शासक का पुत्र, सावन में झूला भूलने को नगर से बाहर इकट्ठी हुई, महेवे की कुछ लड़कियों को ले भागा था। इसका बदला लेने के लिये ही जगमालजी व्यापारी का वेष बना कर उसके राज्य में पहुँचे और ईद के दिन मौका पाकर उन
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