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arrate का इतिहास
वहां से पहले तो यह सेतरावा की तरफ़ गए और फिर चूँटीसरा में जाकर कुछ दिन रहे । परन्तु वहां पर भी घटनावश एक काफिले को लूट लेने के कारण शाही फौज ने इन पर चढ़ाई की । इस पर यह जांगलू में सांखला ऊदा के पास चले गए । इसकी सूचना मिलने पर जब बादशाही सेना ने वहां भी इनका पीछा किया, तब यह जोहियावाटी में जोहियों के पास जा रहे । जोहियों के मुखिया दला ने भी इनकी पहले दी हुई सहायता का स्मरण कर इनके सत्कार का पूरा-पूरा प्रबन्ध कर दिया । परन्तु कुछ ही दिनों में इनके और जोहियों के बीच झगड़ा हो गया । इसी में वि० सं० १४४० ( ई० स० १३८३ ) में यह लखबेरा गांव के पास वीर गति को प्राप्त हुए । वीरमैजी के ५ पुत्र थे ।
१ देवराज, २ चूँडा, ३ जैसिंह, ४ विजा और ५ गोगादेव ।
१. यह गांव वीरमजी ने उसी समय बसाया था । किसी-किसी ख्यात में वीरमजी का पहले वरिया नामक पर्वत के पास वीरमपुर बसाकर रहना और वहां से सेतरावे की तरफ़ जाना भी लिखा है ।
२. यह गांव नागोर परगने में है । किसी-किसी ख्यात में इस गांव का नाम चूडासर भी लिखा मिलता है | परन्तु इस समय नागोर प्रान्त में इस नाम का कोई गांव नहीं है ।
३. वीरमजी ने ऊदा को भी मल्लिनाथजी के विरुद्ध शरण दी थी। इसी उपकार का ध्यान कर उसने इन्हें अपने यहां रख लिया ।
४. कुछ ख्यातों में लिखा है कि जिस समय यह सिन्ध में जोहियों के पास पहुँचे उस समय उन्होंने इनके खर्च के लिये सहवान का प्रान्त दे दिया था ।
५. ढाढी जाति के बहादर नामक कवि ने 'वीरमायण' नाम का भाषा का एक काव्य लिखा है । इसमें रावल मल्लिनाथजी का और उनके पुत्र जगमालजी का हाल लिख कर वीरमजी का इतिहास दिया है । और अन्त में उनके पुत्र गोगादेव का अपने पिता के वैर का प्रतिशोध कर युद्ध में वीरगति प्राप्त करना वर्णित है ।
६. देवराज- यह वीरमजी का ज्येष्ठ पुत्र था । पहले लिख चुके हैं कि वीरमजी अपने बड़े भाई मल्लिनाथजी से झगड़ा हो जाने के कारण, सेतरावा नामक गांव बसाकर कुछ दिन वहां रहे थे । परन्तु उसी झगड़े के कारण जब वह वहां से नागोर प्रान्त की तरफ़ चले, तब सेतरावा और उसके आस पास के २४ गांव अपने पुत्र देवराज को देकर उसकी रक्षा का पूरा प्रबन्ध कर गए थे। इसके बाद वीरमजी का पीछा करनेवाली शाही सेना ने सतरावे पर भी चढ़ाई की । परन्तु देवराज के रक्षकों ने बड़ी वीरता से उसका सामना किया।
७. गोगादेव - यह वीरमजी का छोटा पुत्र था । इसका जन्म वि० सं० १४३५ ( ई० स० १३७८) में हुआ था और यह कुण्डल के शासक भाटी वैरिसाल का दौहित्र था । इसने, आसायच राजपूतों को हराकर, सेखाला और उसके आस-पास के २७ गांवों पर अधिकार कर लिया था ।
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