________________
राव वीरमजी ने इन्हें खेड़ की जागीर दी थी, तथापि जोहिया दला की रक्षा करने के कारण इनके और मल्लिनाथजी के बीच झगड़ा उठ खड़ा हुआ । इससे इन्हें खेड़ छोड़ देना पड़ा ।
कन्याओं को मय बादशाह की लड़की के ले आए। इसी से वहां के शासक ने महेवे पर चढ़ाई की । परन्तु युद्ध में जगमालजी की मार से घबरा कर उसे अपने शिविर में घुस जाना पड़ा। उस समय का यह दोहा मारवाड़ में अब तक प्रसिद्ध है:
"पग पग नेजा पाड़िया, पग पग पाड़ी ढाल । बीबी पूछे खानने जग केता जगमाल ॥”
अर्थात् — जगमाल के कदम-कदम पर शत्रुओं के नज़े तोड़ कर गिराने और कदम-कदम पर उनकी ढालें गिराने का हाल सुन कर बीबी खान से पूछती है कि यह तो बताओ, आखिर, दुनिया में कितने जगमाल हैं ?
जगमालजी ने राज्याधिकार प्राप्त करने के पूर्व ही सिवाना हस्तगत कर लेने की इच्छा से अपने चचा जैतमालजी को मारडाला था । परन्तु सिवाने पर इनका अधिकार न हो सका ।
रावल जगमालजी की मृत्यु के बाद इधर इनका राज्य तो इनके पुत्रों में बंट गया और उधर इनके चचा वीरमजी के पुत्र राव चंडाजी ने मंडोर पर अधिकार कर नया राज्य स्थापित किया ।
इस विषय की यह कहावत मारवाड़ में अब तक चली आती है :
“माला रा मड्ढे नै वीरम रा गड्ढे -"
अर्थात् — मल्लिनाथजी के वंशज मालानी की मढ़ियों में रहे और वीरमजी के वंशज किले मालिक (राजा) हुए ।
जगमालजी के १० पुत्र थे । १ लूंका, २ वैरीसाल, ३ अज, ४ रिडमल, ५ ऊँगा, ६ भारमल, कान्हा, दूदा, ६ मांडलक और १० कुंभा ।
१. किसी किसी ख्यात में खेड़ के स्थान पर भिरड़कोट का नाम लिखा है ।
२. ख्यातों में लिखा है कि लखबेरा गांव के कुछ जोहिया ( यौधेय ) राजपूत मुसलमानी धर्म ग्रहण कर गुजरात के यवन शासक की सेवा में रहते थे। उनके मुखिया का नाम दला था । एक बार वह बहुतसा माल असबाब और एक बढ़िया घोड़ी लेकर अहमदाबाद से निकल भागा । परन्तु मार्ग में जिस समय वह महेवे के पास पहुँचा, उस समय जगमालजी ने वह घोड़ी लेने की इच्छा प्रकट की । इस पर दला भाग कर वीरमजी के पास चला आया । इन्होंने भी शरणागत की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझ उसकी हर तरह से रक्षा की । इस उपकार से प्रसन्न होकर उसने वह घोड़ी वीरमजी को भेट कर दी। जब इसकी सूचना जगमालजी को मिली, तब उन्होंने इनसे वह घोड़ी मांगी। परन्तु इन्होंने इस प्रकार भेट में मिली वस्तु को देने से इनकार कर दिया । यही इनके और जगमालजी के बीच मनोमालिन्य का कारण हुआ ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
५५
www.umaragyanbhandar.com