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मारवाड़ का इतिहास
६. राव जालणसीजी
यह राव कनपालजी के द्वितीय पुत्र थे और अपने बड़े भाई भीम के, पिता के जीतेजी निस्सन्तान, मारे जाने के कारण खेड़ के स्वामी हुए ।
एक साधारण घटनों के कारण इनके और उमरकोट के सोढ़ों के बीच झगड़ा उठ खड़ा हुआ । परन्तु युद्ध होने पर सोढे हार गए और उन्होंने नियत दण्ड देने का वादा करें इनसे सुलह करली ।
इसके बाद यह सिंध और थट्टे की तरफ़ के यवन - शासित प्रदेशों को लूटते हुए मुलतान की तरफ़ पहुँचे । इनके पिता जिस युद्ध में मारे गए थे, उसमें भाटियों की तरफ़ से मुलतान के शासक की सेना ने भी भाग लिया था । इसी वैर का बदला लेने के लिये इन्होंने वहाँ वालों को हरा कर उनसे दण्ड वसूल किया ।
किसी किसी ख्यात में यह भी लिखा है कि जिस समय इन्होंने अपने पिता के वैर का बदला लेने के लिये भाटियों पर चढ़ाई की, उस समय भीनमाल के सोलकियों को भी अपना साथ देने के लिये कहलाया था । परन्तु उन्होंने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया । यह देख उस समय तो यह चुप हो रहे, परन्तु अवकाश मिलते ही इन्होंने भीनमाल पर चढ़ाई करदी | सोलङ्की घबरा गए और उन्हें, अपनी असमर्थता के कारण, इनसे माफ़ी माँगनी पड़ी ।
ख्यातो में यह भी लिखा है कि इनके चचा को सराई जाति के हाजी मलिक ने मारा था । इसलिये इन्होंने उसे मार इसका बदला लिय ।
१. राव जालणसीजी ने चाँदणी गाँव के एक वृक्ष पत्र, पुष्प, फल, टहनी आदि तोड़ने की मनाई कर रक्खी थी । परन्तु सोढों (पँवारों की एक शाखा ) ने जान बूझ कर उसका उल्लंघन कर डाला । इसीसे यह झगड़ा हुआ था ।
२. रावजी ने इस युद्ध में सोढ़ा राजपूतों के मुखिया का साफा छीन लिया था । उसी दिन से, अपनी इस विजय की यादगार में, राठोड़ साफा बाँधने लगे ।
३. इस अवसर पर सोढ़ा दुर्जनसाल ने कुछ घोड़े भेट करने का वादा किया था । परन्तु राव जालासीजी की मृत्यु समय तक भी वह अपनी प्रतिज्ञा पूरी न कर सका । इसीसे अपने स्वर्गवास के समय रावजी ने राजकुमार को इस भेट के वसूल करने की, खास तौर से, ताकीद कर दी थी ।
४. किसी किसी ख्यात में इनका पालनपुर पहुँच हाजी मलिक को मारना लिखा है ।
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