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मारवाड़ का इतिहास
इनके ७ पुत्र थे–१ रायपाल, २ चंद्रपाल, ३ बेहड़, ४ पेथड़, ५ जोगा, ६ खेतपाल और ७ ऊनड़ ।
४. राव रायपालजी यह राव धूहड़जी के बड़े लड़के थे और उनके रणभूमि में वीर गति प्राप्त करने पर खेड़ की गद्दी पर बैठे । यह वीर होने के साथ ही दयालु और उदार स्वभाव के थे । इन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये पड़िहारों को हराकर मंडोर पर अधिकार कर लिया । परन्तु कुछ समय बाद ही वह नगर फिर पड़िहारों के हाथ में चला गया ।
इसके बाद राव रायपालजी ने बाहड़मेर की तरफ़ के पँवारों को परास्तकर उनके अधिकृत प्रदेश को अपने राज्य में मिला लिया । इससे महेवे का सारा प्रान्त इनके शासन में आ गया । यही प्रान्त आजकल मालानी के नाम से प्रसिद्ध है ।
ख्यातों में लिखा है कि जिस समय खीची जींदराव और राठोड़ पाबू के बीच युद्ध हुआ था उस समय पाव की मृत्यु भाटी फरड़ा के हाथ से हुई थी। इसलिये रायपालजी ने उसे मार कर उसके ८४ गांवों पर भी अधिकार कर लिया । उनमें यह भी लिखा है कि इन्होंने जैसलमेर के ( बुध शाखा के ) भाटी ( यादव ) मांगा के पुत्र
चन्द को बहुतसा द्रव्य देकर, जबरदस्ती, अपना पौलपात ( राजद्वार पर दान लेने वाला ) बना लिया था ।
एक वार वर्षा न होने से जब रावजी के राज्य में अकाल पड़ा तब इन्होंने राजकीय भण्डार से अन्न बाँट कर प्रजा की सहायता की, इसीसे लोग इन्हें 'महीरेलण' ( इन्द्र ) के नाम से पुकारने लगे।
१. कर्नल टॉड ने इनके पुत्रों के ७ नाम इस प्रकार लिखे हैं:
१ रायपाल, २ कीरतपाल, ३ वेहड़, ४ पीथल, ५ जुगेल, ६ डालू और ७ बेगड़ (ऐनाल्स ऐंड ऐटिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान, भा॰ २, पृ० ६४३) । इसीप्रकार कहीं-कहीं इनके पुत्रों
के कुछ अन्य नाम भी मिलते हैं। २. ख्यातों के अनुसार उस समय उसमें ५६० गाँव थे । ३. यह रायपालजी का चचेरा भाई था । ४. यह माँगा की चारण जाति की स्त्री के गर्भ से पैदा हुआ था। इसके वंशज रोहड़िया बारहठ
कहलाते हैं ।
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