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गव धूहड़जी गव हड़जी ने पडिहारों को हराकर मंडोर पर भी अधिकार कर लिया था। परंतु उन्होंने भौका पाकर शीघ्र ही भंडोर वापिस छीन लिया । यह देख इन्होंने उन
राग नहाई की। परंतु मार्ग में थोभं और तरसींगड़ी नामक गांवों के बीच इनका पडिहारों से सामना हो गया, और यह उनके साथ के युद्ध में मारे गएँ ।
इनकी यादगार में तरसींगड़ी के तालाव पर जो चबूतरा बनाया गया था, उस पर की पुतली का लेख घिस जाने के कारण अब पढ़ा नहीं जा सकता।
तरसींगड़ी से ही इनका वि० सं० १३६६ ( ई० सन् १३०६ ) का एक अन्य लेख भी मिला है । कहा जाता है कि नागाने का नागनेचियां देवी का मंदिर इन्होंने ही बनवाया था।
जोधाजी के ताम्रपत्र की नकल से प्रकट होता है कि राव धूहड़ी के समय लुंबऋषि नाम का सारस्वत ब्राह्मगा कनौज से राठोड़ों की कुलदेवी चक्रेश्वरी ( आदि पक्षिणी ) की मूर्ति लेकर मारवाड़ आया था। इसके बाद जब उक्त देवी ने राव धूहड़ी को नाग के रूप में दर्शन देकर वर दिया. तब वह नागनेचियाँ के नाम से प्रसिद्ध हुई । इस सेवा के बदले में धूहड़जी न लंबऋपि को अपना पुरोहित नियत कर एक ताम्रपत्र लिख दिया था। उसी को देखकर जोधाजी ने भी उसके वंशज को एक नवीन ताम्रपत्र लिख दिया ।
यह नागना गांव ग्वेड़ से १५ कोस ईशान कोण और जोधपुर से १६ कोस नैर्ऋत्य कोण में है ।
नगर ( मल्लाना-प्रांत के एक गांव ) से मिले महारावल जगमाल के वि० सं० १६८६ ( ई० मन् १६६० ) के लेख लिखा है-मूरिजवंशी कनौजिया राठोड़ सीहा सोनग इए पे ( ख ) ड गोहिलाँ पासे खडग बले लीधी प्रास्थान पुः धूहड नि (ने) देवी नागणेची अविचल राज दीधु.........।"
१. इस घटना के समय गव धूहदर्जा ने एक पड़िहार राजपूत को पकड़कर ज़बरदस्ती अपना ___ढोली ( नक्कारची ) बना लिया था। उसके वंशज देधड़ा कहाते हैं। २. उस समय खेड़ राज्य की सीमा थोव तक थी । यह खेड़ से ६ कोस ईशान कोण में है। ३. यह स्थान खेड़ से ११ कोस ईशान कोण में और पचपदरे से ७ कोस ईशान कोण में है। ४. कर्नल टॉड ने धूहड़जी का मंडोर के युद्ध में मारा जाना लिखा है ( ऐनाल्स ऐंड
ऐंटिविटीज़ ऑफ़ राजस्थान, भा० २, पृ० ६४३ ) । इसी प्रकार किसी-किसी ख्यात में लिखा है कि यह चौहान पाना के थोब पर आक्रमण करने के समय उससे लड़कर
वीरगति को प्राप्त हुए थे। ५. उक्त लेख का पढ़ा गया अंश-"ओं सम्वत् १३६६......आसथान सुत धूहड़........"
( इंडियन ऐंटिक्केरी, भा० ४०, पृ० ३०१)। ६. ख्यातों में लिखा है कि राव धूहड़जी ने निम्नलिखित ३ गाँव दान दिए थे
१ बसी (पाली परगने का) आसिया-जाति के चारण को, २ मेघावस (पचपदरा परगने का) पुरोहित को, ३ समराखिया ( पचपदरा परगने का ) पुरोहित को ।
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