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राव पासथानजी
१ धूहड़, २ धाँधल, ३ चाचक, ४ आसल, ५ हरडक (हरखा), ६ खींपसा, ७ पोहड और ८ जोपसा।
१. धाँधल ने कोलू के चौहानों को हराकर वहाँ पर अधिकार कर लिया था। इसी के छोटे
पुत्र का नाम पाबू था । यह बड़ा वीर और दृढ़-प्रतिज्ञ था। एक बार जायल (नागोर-प्रांत) के स्वामी खीची जींदराव ने ऊदा चारण में उसकी एक घोड़ी माँगी। परंतु उसने वह घोड़ी उसे न देकर पाबू को देदी । इससे जींदराव मन-ही-मन कुढ़ गया । इसके बाद जिस समय पाबू ऊमरकोट के सोढा परमारों के यहाँ विवाह करने को गया, उस समय जींदराव ने अपने पुराने अपमान का बदला लेने के लिये ऊदा की गाएं छीन लीं। यह देख ऊदा की स्त्री देवल पाबू के पास सहायता माँगने पहुँची । यद्यपि उस समय वह विवाह मंडप में था, तथापि देवल की प्रार्थना सुन तत्काल गायों को छुड़वाने के लिये चल दिया । मार्ग में उसने अपने बड़े भाई बूडा को भी साथ ले लिया । युद्ध होने पर ये दोनों भाई मारे गए । ख्यातों में इस घटना का समय वि० सं० १३२३ लिखा है, परंतु यह संदिग्ध है। अंत में बूडा के पुत्र मरड़ा ने (जो इस घटना के समय मातृ-गर्भ में था, बड़े होने पर ) जींदराव को मारकर अपने पिता और चाचा
के वैर का प्रतिशोध किया । मारवाड़ के लोग विवाह-मंडप से उठकर गो और शरणागत-रक्षा के निमित्त प्राण देने के कारण पाबू की और पितृ-भक्ति तथा साहस के कारण झरड़ा की अब तक पूजा करते हैं।
कोल् (फलोदी-प्रांत) के पाबू के मंदिर में के पढ़े गए लेखों में सबसे पुराना लेख वि० सं० १४१५ का है । उसमें धाँधल सोभ के पुत्र सोहड़ द्वारा पाबू का मंदिर बनवाने का उल्लेख है।
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