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राव सीहाजी अधिक समय तक न ठहर सकी । इससे मैदान मुसलमानों के हाथ रहा और वीरवर सीहाजी इसी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए ।
१. मारवाड़ की ख्यातों में यह भी लिखा है कि सीहाजी कुछ दिन तक पाली में रह कर कन्नौज
लौट गए थे । वहाँ पर इनकी राजधानी गढ़ गोयन्दाणे में थी । इनका पहला विवाह बङ्गाल-नरेश की राज-कन्यासे और दूसरा पाटण के सोलंकी राजा की पुत्री से हुआ था। इनके पहली रानी से ४ पुत्र और दूसरी से ३ पुत्र हुए । सीहाजी ने मारवाड़ से लौट कर १३ वर्ष तक गढ़ गोयन्दाणे में राज्य किया । इनकी मृत्यु के बाद वहाँ का अधिकार पहली रानी के बड़े पुत्र को मिला और दूसरी रानी अपने तीनों पुत्रों (आसथान, सोनग और अज ) को लेकर पाली (मारवाड़) में चली आई । परन्तु यह ठीक प्रतीत नहीं होता ।
कर्नल टॉड ने अपने राजस्थान के इतिहास में सीहाजी का वृत्तान्त इस प्रकार लिखा है:
"वि० सं० १२६८ (ई० स० १२१२ ) में जयचन्द्र के पौत्र सेतराम और सीहाजी, दो सौ प्रादमियों को साथ लेकर, कन्नौज से रवाना हुए । जिस समय ये कोलूमढ (आधुनिक बीकानेर नगर से २० मील पश्चिम की तरफ़) पहुँचे, उस समय वहाँ पर सोलंकियों का राज्य था । वहाँ के राजा ने इनकी बड़ी खातिर की। इसकी एवज़ में सीहाजी ने सोलंकियों के शत्रु लाखा फूलानी से युद्ध कर उसे हराया । इसी युद्ध में सेतराम मारा गया । इनकी इस सहायता से प्रसन्न होकर सोलंकी नरेश ने अपनी बहिनका विवाह सीहाजी के साथ कर दिया । वहाँ से चल कर यह (सीहाजी) द्वारका जाते हुए अनहिल पाटन पहुँचे । वहाँ के राजा ने भी इनकी बड़ी आवभगत की। जिस समय सीहाजी पाटन में ठहरे हुए थे, उसी समय लाखा फूलानी ने उक्त नगर पर आक्रमण किया। इस बार के युद्ध में सीहाजी ने लाखा को मार कर अपने भाई का बदला ले लिया । उधर से लौटकर जब सीहाजी लूनी के किनारे पहुँचे, तब इन्होंने डाभियों से मेहवा और गुहिलों से खेड़ छीन लिया । इसके बाद यह पाली आए और इन्होंने वहाँ पर होने वाले मेर व मीणों के उपद्रव को शान्तकर पल्लीवाल ब्राह्मणों की रक्षा की । परन्तु कुछ समय बाद इन्होंने पल्लीवाल ब्राह्मणों को मारकर वहाँ पर भी अधिकार कर लिया। इसके एक वर्ष बाद वहीं पर इनका स्वर्गवास हुआ । ( ऐनाल्स एण्ड ऐगिटक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान, भा॰ २, पृ. ६४०-६४३ ) । परन्तु यह सारी कथा कपोल-कल्पित है; क्योंकि पल्लीवाल ब्राह्मण पाली के शासक न होकर व्यापारी ही थे । पाली में स्थित सोमनाथ के मन्दिर से मिले वि० सं० १२०६ के लेख से प्रकट होता है कि उस समय वहां पर सोलंकी कुमारपाल का राज्य था और उसकी तरफ से बाहडदेव वहां का शासक था । वि० सं० १३१६ के संधासे मिले चौहान चाचिगदेव के लेख से ज्ञात होता है कि इस चाचिगदेव का पिता उदयसिंह नाडोल, जालोर, मंडोर, बाहडमेर, रत्नपुर, साँचोर, सूराचंद, राडधड़ा, खेड़, रामसीन और भीनमाल
आदि का शासक था । उदयसिंह के वि. सं. १२६२ से १३०६ तक के लेख मिले हैं । इससे अनुमान होता है कि सोलंकियों के बाद पाली पर चौहानों का अधिकार हुआ होगा। ऐसी हालत में सीहाजी का वहाँ के पल्लीवाल व्यापारियोंको मारकर उनमें पाली छीनना बिलकुल असंगत ही है ।
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