________________
राव सीहाजी (ई० स० १९४) तक जीवित था । ऐसी हालत में इसकी मृत्यु सीहाजी के मारवाड़ में आने से करीब २१६ वर्ष पूर्व हुई होगी । इसलिये मूलराज और उसके समकालीन लाखा का सीहाजी के समय विद्यमान होना और उस लाखों का सीहाजी के हाथ से मारा जाना असम्भव ही प्रतीत होता है ।
ख्यातों में लिखा है कि जब सीहाजी पाटन से लौट कर पाली ( मारवाड़) पहुंचे, तब वहाँ के पल्लीवाल ब्राह्मणों ने भी इनसे सहायता की प्रार्थना की। उस समय पालीनगर व्यापार का केन्द्र हो रहा था और फारस, अरब आदि पश्चिमी १. पं. गौरीशङ्करजी अोझा के लिखे 'राजपूताने के इतिहास' में गुजरात के सोलंकी मूलराज
प्रथम का समय १०१७ से १०५२ लिखा है ( भा॰ २, पृ० २१५) । परन्तु उपर्युक्त नवीन लेख के मिल जाने से वह ठीक नहीं हो सकता । सोलंकियों के वंश में एक मूलराज द्वितीय भी हुआ है । परन्तु एक तो उस ( मूलराज द्वितीय) का समय वि० सं० १२३३ मे १२३५ तक माना गया है । दूसरे वह बाल्यावस्था में ३ वर्ष राज्य करके ही मर गया था । इसीसे वह बाल मूलराज के नाम से प्रसिद्ध था। ऐसी हालत में उसकी कन्या से सीहाजी का विवाह होना भी असम्भव ही है । वास्तव में सीहाजी के समय गुजरात पर सोलंकी भीमदेव द्वितीय का राज्य था। उसका समय वि० सं० १२३५ से १२६८ तक माना गया है । परन्तु पहले लिखा जा चुका है कि मुहणोत नैणसी के इतिहास में सीहाजी का विवाह सोलंकी सिद्धराज जयसिंह की कन्या से होना लिखा है । यदि उसका लिखना ठीक हो, तो यह जयसिंह ( जयन्तसिंह) द्वितीय ही हो सकता है; जिसने कुछ समय के लिये सोलंकी भीमदेव द्वितीय के राज्य पर अधिकार कर लिया
था। परन्तु इस विषय में भी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। २. कच्छ के जाडेजा नरेशों में लाखा नाम के तीन नरेश मिलते हैं । डफ की 'क्रॉनॉलॉजी
ऑफ़ इण्डिया' में इनके नाम और समय इस प्रकार दिए हैं:(१) लाखा गुडारा या ढोडरा, ई० स० १२५० (वि० सं० १३०७) (२) लाखा फूलानी, ई० स० १३२० (वि० सं० १३७७) (३) लाखा जाम, ई० स० १३५० (वि० सं० १४०७)
इसी पुस्तक में लाखा फूलानी के विषय में लिखा है कि वह खेड़कोट का राजा था और उसने काठियों को दबा कर काठियावाड़ के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था। कहीं पर इसकी मृत्यु का इसके जामाता के हाथ से होना और कहीं पर इसका, अड़कोट ( काठियावाड़) में मूलजी वाघेला के साथ के युद्ध में, राठोड़ सीहाजी के द्वारा मारा जाना लिखा है । परन्तु इसके समय के विषय में बड़ी गड़बड़ है । ( देखो पृ. २६० और पृ० २१५-२१६) । परन्तु इस पुस्तक में दिए वृत्तान्त और समय के विषय में स्वयं ग्रन्थ लेखिकाने ही सन्देह प्रकट कर दिया है । कुछ लोग सीहाजी का जैसलमेर के रावल भाटी लाखा से लड़ना अनुमान करते हैं । उक्त राज्य की ख्यातों में उसका समय वि० सं० १३२७ से १३३० तक लिखा है । (तवारीख जैसलमेर, पृ. ३३)
३७
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com