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राव सीहाजी इतिहास से ज्ञात होता है कि जिस समय सीहाजी करीब २०० साथियों के साथ महुई से पश्चिम की तरफ़ चले थे, उस समय इनका विचार द्वारका की तरफ़ जाने का था । परन्तु मार्ग में जब यह पुष्कर में ठहरे, तब वहीं पर इनकी भेट तीर्थ यात्रार्थ आए हुए भीनमाल ( मारवाड़ के दक्षिणी प्रान्त के एक नगर ) के ब्राह्मणों से हो गई । उन दिनों मुलतान की तरफ के मुसलमान अक्सर भीनमाल पर आक्रमण कर लूट-मार किया करते थे। इसीसे उन ब्राह्मणों ने मीहाजी को अपने दल-बल सहित देख कर इनसे सहायता की प्रार्थना की। सीहाजी ने भी इसको सहर्ष स्वीकार कर लिया और भीनमाल जाकर आक्रमणकारी मुसलमानों के मुखियाओं को मार डाला । इस विषय का यह दोहा मारवाड़ में अब तक प्रसिद्ध है:
भीनमाल लीधी भड़े, सीहै सेल बजाय ।
दत दीन्हौ सत संग्रह्यो, ओ जस कदे न जाय ।। अर्थात्-वीर सीहाजी ने भाले के जोर से भीनमाल पर अधिकार कर लिया और इसके बाद उसे (ब्राह्मणों को) दान देकर पुण्य का सञ्चय किया। इनका यह यश सदा ही अमर रहेगा ।
इस प्रकार भीनमाल के ब्राह्मणों का कष्ट दूर कर सीहाजी ने द्वारका (गुजरात) की यात्रा की और वहाँ से लौटते हुएं कुछ दिन पाटन (अनहिलवाड़े) में ठहरे । वहाँ पर उस समय सोलंकियों का राज्य था ।
ख्यातों में लिखा है कि सीहाजी ने पाटन के राजा मूलराज सोलंकी की सहायता कर कच्छ के राजा लाखा फूलानी को मारा था और इसके एवज
१. ख्यातों में यह भी लिखा है कि सीहाजी ने द्वारका से लौटते समय भुज के सामा भाटी,
थिराद के शासक, साँचोर के चौहान, पीलूडा गाँव के कोली मेघा, करड़ा पर्वत के करतर ( जाति के ) हरदास छोगाला; और भीलड़ा गाँव के डाभी आसा (ईडर के
दीवान ) को भी दण्ड दिया था । ख्यातों में सीहाजी का द्वारका को जाते समय भी पाटन होकर जाना लिखा है । २. मुहणोत नैणसी ने पाटन के राजा मूलराज को चावड़ा जाति का लिखा है ।
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