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मारवाड़ का इतिहास देशों के माल के यही होकर आगे जाने के कारण यहाँ के पल्लीवाल व्यापारी बड़े समृद्धिशाली बन गए थे। परन्तु साथ ही सोलकियों और चौहानों के निर्बल हो जाने से आस-पास के जङ्गलों में रहने वाले मीणा, मेर आदि लुटेरी जातियों के लोग मौका पाते ही उन्हें लूट लिया करते थे । सीहाजी ने उन ब्राह्मणों की और उस प्रदेश की दशा देख उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और वहीं पर अपना निवास स्थापित कर आस-पास की लुटेरी जातियों से उन व्यापारी ब्राह्मणों की रक्षा करने लगे । इस सहायता के एवज में उन ब्राह्मणों ने भी इनके खर्च के लिये कुछ लागें नियत कर दी । कुछ ही काल में आस-पास के प्रदेश पर सीहाजी का अधिकार हो गया।
___उस समय खेर्ड पर गुहिल राजपूतों का अधिकार था । परन्तु उनके और उनके मन्त्री डाभी राजपूतों के वीच मनोमालिन्य रहा करता था । इसी घर की फट से लाभ उठाने के लिये सीहाजी ने उनके देश पर चढ़ाई की । परन्तु इसी समय णली पर मुसलमानों ने हमला कर दिया । इसकी सूचना मिलते ही सीहाजी खेड़ की तरफ से लौट कर मुसलमानी सेना पर टूट पड़े । इससे उसे मैदान छोड़ कर भागना पड़ा । यह देख राठोड़ों ने उसका पीछा किया । परन्त उनके वीठ नामक गाँव के पास पहुँचते ही मुसलमानों की एक नवीन सेना उधर आ निकली । इससे मुसलमानों का बल बहुत बढ़ गया और उनकी भागती हुई सेना ने मदद पाकर पीछा करती हुई राठोड़-सेना पर प्रत्याक्रमण कर दिया । दोनों तरफ से जी खोल कर युद्ध हुआ। परन्तु थकी हुई अल्पसंख्यक राठोड़-सेना मुसलमानों की बहु-संख्यक ताजादम फौज के सामने १. यह गांव पाली से ७० मील पश्चिम जसोल के पास उजड़ी हुई दशा में अबतक
विद्यमान है। यद्यपि कर्नल टॉड ने सीहाजी का खेड़ राज्य पर अधिकार करलेना लिखा है और इसकी पुष्टि नगर (मारवाड़) से मिले वि० सं० १६८६ के राठोड़ जगमाल के लेख से भी होती है, तथापि ख्यातों से खेड़ पर पहले पहल आसथानजी का अधिकार होना ही पाया जाता है । ऐसी हालत में मानना पड़ता है कि यदि सोहाजी ने खेड़ के कुछ प्रदेशों पर अधिकार किया भी होगा तो भी सम्भवतः उनकी मृत्यु के बाद वे स्थान एकवार फिर राठोड़ों के हाथ से निकल गए होंगे।
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