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मारवाड़ का इतिहास
२. राव प्रासथानजी
• यह राव सीहाजी के ज्येष्ठ पुत्र थे, और उनके युद्ध में वीर गति प्राप्त कर लेने पर उनके उत्तराधिकारी हुए । यह भी अपने पिता के समान ही वीर और साहसी थे।
ख्यातों में लिखा है कि यद्यपि उस समय पाली पर इन्हीं का अधिकार था, तथापि इन्होंने अपना निवास वहाँ से ५ कोस दक्षिण के गूदोच नामक गाँव में कर रक्खा था । इसके बाद जब इनके पास धन-जन का अच्छा संग्रह हो गया, तब इन्होंने, डाँभी राजपूतों को अपनी तरफ़ मिलाकर, गुहिल क्षत्रियों से खेड़े का राज्य छीन लिया । १. जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, रतलाम, सीतामऊ, सेलाना, झाबुआ और ईडर के
राठोड़-नरेश इन्हीं के वंशज हैं । २. हमारे मतानुसार इनका जन्म वि० सं० १२६६ (ई० सन् १२१२) में हुआ होगा।
इनके पिता राव सीहाजी की मृत्यु से संबंध रखनेवाला लेख वि० सं० १३३० की कार्तिक बदी १२ (ई० सन् १२७३ की ६ ऑक्टोबर) का है। उसके अनुसार गव
आसथानजी का राज्याभिषेक भी उसी समय हुआ होगा। ३. डाभियों का निवास पाली से ३६ कोस पश्चिम के महेवे में था। ४. ख्यातों में लिखा है कि उस समय खेड़ के गुहिल-नरेश का प्रधान मंत्री डाभी-क्षत्रिय
सांवतसी था । परन्तु उन दोनों के बीच मनोमालिन्य हो जाने के कारण वह आसथानी से मिल गया । यद्यपि उसी की प्रेरणा से खेड के गहिल-नरेश ने अपनी कन्या का विवाह आसथानजी से करना निश्चित किया था, तथापि उस ( मंत्रो) ने आसथानजी को समझाया कि विवाहोत्सव के समय जब गुहिल-वंशी दाईं तरफ़ और डाभी लोग बाई तरफ़ बैठे हों, तब आप गुहिलों को मारकर खेड़ पर अधिकार करलें, और बाद में उनके राज्य का आधा हिस्सा मुझे देदें। यह सुन आसथानजी ने सोचा कि जब यह इस समय हमसे मिलकर अपने वर्तमान स्वामी को धोका देने को तैयार है, तब संभव है, किसी समय तीसरे पुरुष से मिलकर हमारे साथ भी यही बर्ताव करे । ऐसा सोच उस समय तो यह चुप हो रहे, परन्तु समय आने पर इनके इशारे से इनके साथ के सरदारों ने डाभी और गुहिल दोनों ही जातियों के मुखियाओं को मार डाला । इसी घटना के कारण मारवाड़ में यह कहावत चली है-"डाभी डावा ने गोहिल जीवणा" अर्थात्-किसी स्थान पर इकट्ठे हुए दाएं और बाएं दोनों ही तरफ़ के लोग अविश्वसनीय या शत्रु हैं । कहते हैं कि इस घटना के बाद बचे हुए गुहिल काठियावाड़ की तरफ़ चले गए, क्योंकि वहां पर इस वंश के लोग पहले से ही अधिकार प्राप्त कर चुके थे । भावनगर, लाठी, पालीताना और वल के राजवंश गुहिल वंश की ही संतान हैं |
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